Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 456
________________ मैं अपने कर्तव्य के पालन करने की उम्मीद रखता था। तब मुझे छोटा समझकर चहीं छोड़कर चले गये। मझे या ती नाट्याचार्य या फिर कामकाचार्य, इनमें से केवल एक बनना है। आज इस विजयोत्सब पर इस यारे में निर्णय हो जाय ऐसी मेरी अपनी विशेष इच्छा है। इतना कह झुककर प्रणाम कर वह चुप हो गया। बिहिदेव ने पूछा, "यह तो तुम्हारी एक बात हुई। दूसरी बात?" "इसका पहले निर्णय हो जाय, बाद में मैं दूसरे के बारे में निवेदन करूँगा।" बिट्टियण्णा बोला। विट्टिदेव ने शान्तला की और देड : डोर समझ र भोक सन्निधान के सामने सिर झुकाकर कहा, "कुमार बिट्टियण्णा ने जिन दो विद्याओं को सीखा हैं उनमें से सिर्फ एक का उपयोग करने के लिए आज्ञा चाहता है। उसकी इच्छा के अनुसार निर्णय करेंगे तो दो गुरुओं में से किसी एक के प्रति अपचार होगा। यह सोचकर मन्निवान ने बह दायित्व मुझ पर छोड़ रखा है। सच है, मैंने इसे नृत्य विद्या सिखायी इसलिए मैं इसकी गुरु हूँ। यह योग्य शिष्य भी सिद्ध हुआ। आप लोगों ने इसकी कला की विविधता को देखकर आनन्द का अनुभव किया है। ऐसी काना को छोड़ देने तथा भविष्य में उसका उपयोग न करने की अनुमति मैं कैसे दे सकती हूँ? मानव के जीवन-संघर्ष में हार-जीत का जैसा अर्थ है वैसे ही कला द्वारा स्फुरित पानवीय मूल्यों की अत्यन्त आवश्यकता समाज के लिए है। दोनों ही त्याच्च नहीं। परन्तु अपने जीवन में कौन मुख्य हैं और कौन गौण-यह निर्णय स्वयं को ही कर लेना चाहिए। जो मुख्य होगा और महत्त्व का होगा वह प्रधान हो जाता हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि शेष विद्याओं को छोड़ देना चाहिए। उनका भी उपयोग, गौण होने पर भी, होता रहना चाहिए। इसलिए इस सम्बन्ध में बिट्टियण्णा को ही अपनी इच्छा का निवेदन करना होगा।" कहकर शान्तलदेवी बैट गयीं। विष्ट्रियण्णा ज्यों-का-त्यों खड़ा रहा। थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के बाद बिट्टिदन ने पूछा, ''पट्टमहादेवी ने जो कहा उसे समझे?" पहले एक वार मैंने राजमहल के ज्योतिषी से पूछा था कि मैं आगे चलकर क्या होऊँगा। मेरी जन्मपत्री देखकर बताइए। उन्होंने बताया-उच्च कुज लग्न के केन्द्र में होने के कारण पंच महापुरुष योगों में से एक रुचिक योग तुम्हारे लिए है। तुम कुछ भी काम सीखो उसमें परिणत होओगे। बड़े होने पर तुम्हें ही सोचकर निर्णय कर लेना होगा। जैसे उन्होंने बताया वैसे ही मुझे सब विषयों में अभिरुचि है। इतना ही नहीं, मुझे किसी विधा को सीखने में कोई कार नहीं होता। तलवार चलाने में, धनुर्विद्या सीखने में, घोड़े को साधने में, चित्रकला में, नृत्य में-इनमें किसी को सीखते समय मुझे कोई कष्ट मालूम ही नहीं हुआ। सब आसान ही 460 :: पट्टपहाटेची शान्तला : भाग दो

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