Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 437
________________ "उसके अनुसार ही हमें चलना होगा-सो तो नहीं, निर्णय तो हमें ही करना है ।" "सन्निधान ने निर्णय ले लिया होगा ?" "निर्णय ले लिया होता तो उसके बारे में देवी से पूछते ही क्यों ?" " बात चल रही हैं, मगर अभी तक विषय गुप्त ही हैं ! " "न, न, इसमें गुप्त रखने की क्या बात है :-" ऐसा है तो सीधा बताने में शंका किस बात की "शंका? किस पर “मुझे क्या मालूम बात जानने पर ही तो कुछ कहा जा सकता है।" " बात की जानकारी न होने पर भी शंका की बात देवी के मुँह से निकलने के कारण पन में कुछ विचार तो उत्पन्न हुए ही होंगे न?" "हाँ, अनेक विचार उठ सकते है। मुझपर शंका हो सकते हैं, नवदण्डनाथ पर शंका हो सकती है, नहीं तो सन्निधान को अपने ही ऊपर शंका हो सकती है। सूचना किस बात से सम्बन्धित है; किस व्यक्ति से सम्बन्धित है यह मालूम होने पर ही अनुमान किया जा सकता हैं।" "कल्पना की व्याप्ति बहुत अधिक विस्तृत हो गयी!" "बात का जब निश्चय नहीं होता तब ऐसा ही हुआ करता है।" "तो अब उसी वात की ओर चलें। अश्व-विद्या में बम्मलदेवी निष्णात हैं, इसलिए बुद्ध-शिविर में उनकी उपस्थिति लाभदायक होगी - यह सूचना मंचिदण्डनाथ की है।" "हाथ, इस बात के लिए इतना घुमाना फिराना क्या जरूरी था उनके चलने पर मेरे लिए भी एक साथी मिल जाएगी। उन्हें भी अकेलापन नहीं अखरेगा। तो वे जा सकती हैं यही सन्निधान का विचार है न?" "कोई आश्चर्य नहीं कि जाने के बारे में वे ही सूचित करें।" "सन्निधान के मन में ऐसा विचार उठने का कारण ?" "लगता है, देवी की तरह उनमें भी क्षात्र भाव प्रबल हैं।" "तो सन्निधान का यही आशय है कि वे भी चलें? "पट्टमहादेवी को कोई आपत्ति न हो, तो हमें भी कोई आपत्ति नहीं ।" I "अब तक सन्निधान को लगता रहा कि पटरानी रुकावट डाल सकती हैं है न?" "हमने ऐसा तो कहा नहीं।" " फिर भी मुझे लगा कि सन्निधान की बात में यह भाव द्योतक हो रहा है।" तुरन्त बिट्टिदेव ने और कोई उत्तर नहीं दिया । पट्टमहादेवी शान्तला भाग टो : 441

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