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'सन्निधान की प्राणरक्षा जितनी ज़रूरी हैं, उतनी ही जरूरी है उस घोड़े की. रक्षा जिस पर सन्निधान सबार होते हैं। इसलिए आवश्यक लगा।" उत्साह से बम्मलदेवी ने कहा।
"अंगरक्षक हमेशा हमारी रक्षा में सन्नद्ध रहेंगे तब भला इस विशिष्टता की क्या आवश्यकता है?" बिट्टिदेव ने कहा।
"अंगरक्षक तलवार और मुगदरवाले सैनिकों से रक्षा कर सकते हैं, दूर से अचानक घुस आनेवाले तीरों से नहीं। इसके लिए उस अश्व की रक्षा सन्निधान के संरक्षण को दृढ़ता प्रदान करती हैं।" बम्मलदेवी ने कहा।
"वह कल तक तैयार हो जाएंगे क्या?' बिट्टिदेव ने सवाल किया।
.: सनि निकित मुह में यात्रा कर सकते हैं। उनके तैयार होते हो मैं उन्हें लेकर रवाना हो जाऊंगी, और जल्दी ही साथ आ मिलूंगी।' बम्मलदेवी ने कहा। ___ "यह नहीं हो सकता। आपको हमारे ही साध यात्रा करनी होगी। उन्हें कोई और ले आएंगे।' शान्तलदेवी ने कहा।
"तैयार होने पर एक बार उन्हें परख लेना अच्छा है। इसलिए...''
बम्मलदेवी की बात खतम होने से पहले ही शान्तलदेवी ने उसे रोककर कहा, "कारण कुछ भी रहे, आप हमारी रक्षा के अन्दर रह रही हैं, इस वजह से आपका अकेली यात्रा कराने के लिए सन्निधान नहीं मानेंगे।"
"अकेली कैसे? अन्य घुड़सवार, सैनिक सब साथ होंग न" बम्मलदेवी न
___ "कितने भी पुरुष साध रहें, साथ में एक स्त्री के होने के बराबर नहीं होते।" शान्नलदेवी ने कहा।
"चट्टलदेवो साथ रहेंगी तो न बनेगा?" "कल के अन्दर तैयार न हो सकेगा।"
"वहीं काम हो रहा है। दालने का काम होता तो बन जाता। मगर दालन पर वह बांझीला बन जाता है। उसे जितना हल्का बनाए उतना अच्छा, इसलिए लोहे के पतले परत से तैयार करना हैं ऐसे काम में थोड़ा ज़्यादा समय लग जाता
"तब तो सन्निधान निश्चित मुहूतं पर यात्रा करें। हम आपके साथ चलेंगी।"
"राजदम्पती की सहयात्रा के लिए मुहृतं ठहराया है, इसलिा। दोनों सन्निधान एक साथ यात्रा करें। यही राष्ट्र के लिए शुभकर और श्रेयस्कर है। मेरे विषय में आप आतोंकत न हों।"
पहमहादेवी शान्तला : भाग टो :: 443