Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 448
________________ मंचिदण्डनाथ की बातें सुनने के बाद शान्तलदेवी ने कहा, "उस सम्बन्ध में उन्हीं से पूछकर जान लीजिए। हमारे सामने दिल खोलकर वे नहीं बता सकेंगी।" फिर बम्मलदेवी की ओर मुड़कर प्रश्न किया, "हैं न पल्लवराजकुमारी जी : " सबकी दृष्टि बम्मलदेवी की ओर जा लगी। बम्मलदेवी ने एक हल्की सी मुस्कराहट के साथ सबकी ओर देखा । फिर पलंग पर लेटे बिट्टिदेव की ओर देखा । के लिए रोगों की नहीं हो गयीं। उसने उनकी आँखों में कृतज्ञता के साथ, कुछ और भाव भी देखे। उसका सारा शरीर स्पन्दित हो उठा। वह धीरे से उठी और तम्बू के द्वार की ओर बढ़ गयी । "बला, इन्हें जहाँ ठहराया है वहाँ तक भेज आओ।" पट्टमहादेवी ने कहा । वम्मलदेवी रुकी और मुड़कर बोली, "चट्टला, पट्टमहादेवी की आज्ञा का पालन हो। तुम सबकी मेरे मुक़ाम पर बुला लाओ। मुझे जाकर सारी तैयारी करनी है। उनके साथ तुम भी तो आयी ही थी, तुम सब बता दो। मुझसे अधिक अच्छा जानती हो। तुम ही ने तो पट्टमहादेवी को सब-कुछ बताया है। थोड़ी देर के पश्चातू तुम इन्हें ले आओ" कह बम्मलदेवी ने कुछ झुककर प्रणाम किया और अपने मुक्काम की ओर चल दी। दण्डनाथ पुनीसमय्या ने कहा, "मंचिदण्डनाथ की अश्वसेना की फुरती से हमारा नुकसान कम हुआ। अबकी विजय के लिए उनके योद्धाओं की मदद बहुत हद तक कारण है। उन्हीं में से कुछ योद्धाओं को बोकण की देखरेख में वहाँ तैनात कर आया हूँ। जब हम जहाँ के तहाँ न ठहरकर आगे बढ़ें और नीलगिरि को अधिकार में कर लें, यह उचित होगा। सन्निधान यदि मान लें तो मैं स्वयं इस विजय यात्रा पर जाऊँगा ।" “इन सभी बालों पर यादवपुरी लौटने के बाद विचार कर निर्णय करेंगे। सैनिक उत्साह से भरे हैं, यह ठीक हैं। अभी उन्हें एक दूसरे युद्ध के लिए प्रोत्साहन देकर उकसाएंगे तो उनके मन में कुछ कड़आपन उत्पन्न जाएगा। वह अच्छा नहीं। अभी तो उन लोगों को यह आनन्द और उत्साह लेकर घर पहुँचकर पारिवारिक सुख अनुभव करने दें। भविष्य में यह आवश्यक अवसरों पर प्रोत्साहित करने में विशेष सहायक होगा। अभी फिर से युद्ध करने के लिए प्रेरित करने पर उनका उत्साह भंग हो जाएगा, एक कडुआपन आ जाएगा। शुरू-शुरू में कइआपन न दिखने पर भी, अन्दर ही अन्दर बह बढ़नेवाली सौतेली मत्सरता जैसा रूप धारण कर लेगा, " शान्तलदेवी ने कहा । "सौतेली मत्सरता की बात अब क्यों ?" किसी धुन में रहनेवाले बिट्टिदेव के मुँह से अचानक निकला । 152 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो

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