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दोनों को तृप्त करने योग्य इतना वरदान जब प्राप्त हो गया है तव और कौन-सी आकांक्षाएँ रह जाती हैं। इस राजपरिवार में जो शान्ति और तृप्ति आज विराजमान है वह सतत बनी रहे। कोई विघ्न-बाधा उत्पन्न न हो.-यही देवी से बारम्बार प्रार्थना है।" कहते हुए एचलदेवी ने हाथ जोड़कर वन्दना की।
राजलदेवी ने कहा, "जिस किसी ने समीप से पट्टमहादेवी को और महामातृश्री को देखा है-ऐसा कोई भी उनके अनहित की बात सोच ही नहीं सकता।"
''तुम्हें मालूम नहीं बेटी, यह संसार बहुत बुरा भी हैं। जिस हाथ ने भोजन परोसा उसी हाथ को काटकर, उसके कंगन को बेचकर अपना स्वार्थ पूरा करनेवाले भी हैं इस संसार में। दयाभाव से आश्रय देने पर अवसर पाते ही अपना अधिकार जमानेवाले भी हैं। आश्रयदाता को ही दूर भागने की परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दो
“पट्टमहादेवी ने राज्य-भर में जो प्रेम निरिणी बहायी, वही उनका प्रथल रक्षण हैं। यह बिलकुल सम्भव ही नहीं कि कोई उनका अहित सोच सके।" राजलदेवी ने कहा।
__“ऐसी बातें पस्तक में पढ़ते समय अच्छी लगती हैं। पट्टमहादेवी प्रेम निर्झरिणी बहानेवाली हैं-वह सच है। फिर भी बह अरिपड्वर्ग से आवृत मानवों के ही बीच में रह रही है न। एक वही है जो किसी भी तरह की सन्दिग्धावस्था में, संयम से रहकर, कड़ेपन से दूर अपने मन को शुद्ध और शान्त रख सकती है। पर अपने जीवन की अनुभूतियों को दृष्टि में रखकर हमें कहना पड़ता है कि ऐसे निरातकित हो रहना भी अच्छा नहीं। इसलिए मैंने देवी से विनती की।" एचलदेवी ने कहा। ___ 'महामातृश्री के अनुभवों के सामने हम तो क्या चीज हैं? फिर भी सन्टिग्धता की सूचना मिले बिना, आमतौर पर व्यक्ति भगवान की शरण में नहीं जाया करते। इसलिए यदि महामातृश्री के सामने ऐसी कोई, सन्देह-भरी स्थिति उत्पन्न हुई हो तो उसे जड़ से निवारण करने का प्रयत्न करना उचित है न?" बप्पलदेवी ने बात जाननी चाही। ____ "हमें कुछ समझ में आये या नहीं, सकारण अन्तःकरण में कुछ शंका हो या न हो, उसका निवारण करने के लिए भगवान की स्वीकृति और उसका सहकार आवश्यक होता है। उसके बिना मनुष्य को अपने प्रयत्न का कोई फल नहीं मिलता। इसलिए सब कुछ उस सर्वशक्तिमान परमात्मा पर ही छोड़ देना अच्छा है। उसकी प्रेरणा के बिना कोई कार्य नहीं होता। अब आप ही की बात लें। हमने तो आहान नहीं किया था कि आप लोग आएं और हममें इस भाँति सम्मिलित हो जाये, और हम आश्रय दे देंगे। आपको लगा, आप आये। उसकी प्रेरणा से ही
154 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो