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सोचेगा वह कभी सुखी नहीं होगा। यह बात मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ । काश! आज हमारे प्रभु और मेरे ससुर महाराज विनयादित्य जीवित होते तो हम सबकी प्रियपात्र अम्माजी को देखकर कितने प्रसन्न होते ! यह पुण्य उनके भाग्य में नहीं बदा था... पर अब इन सभी बातों को विस्तार के साथ बतलाने के लिए r ख़ुद शीघ्र ही उनके पास जानेवाली ही हूँ नः..." कहते-कहते उन्होंने होठ दबाकर मौन धारण कर लिया। ऐसे मौके पर ऐसी बात मुँह से निकालना उचित नहीं या । अमंगल के निवारण के निमित्त उन्होंने एक बार अपना सिर भी हिलाया ।
यह सब सुनकर किसी को कुछ नहीं सूझा कि क्या कहें।
एक क्षण बाद एचलदेवी ने फिर कहा, "उम्र के ढलने पर मन में जो विचार उठते हैं, उन्हें कहते-कहते कुछ बदल भी जाया करते हैं। मेरे लिए ही देखो, यों तो आजकल न ही अधिक बातें सुनती हूँ और न ही कहती हूँ। फिर भी आज पता नहीं, बेलगाम घोड़े की तरह यह जीभ क्यों सरपट चलने लगी है। हमें जिसे नहीं देखना चाहिए वह सब देखना जो पड़ा है। सच ही, वे भाग्यवान हैं जो इस सबको देखे बिना ही यहाँ से कूच कर गये। मानव जनमते ही मरण को साथ लेकर इस लोक में प्रवेश करता है। यह दूसरी बात हैं कि प्रमादवश हमें ऐसा आभास नहीं हो पाता हैं। फिर यह भी तो है कि उस मरण की अनिवार्यता को 'भी, जब उसकी याद करते हैं तो हम डर जाते हैं। उसके सम्बन्ध में बात करना 'भी ग़लत मानते हैं। कभी-कभी उसके बारे में कहते भी हैं तो समय-कुसमय की कल्पना कर लेते हैं। इसलिए जो बात कह बैठते हैं वह हमारी अधिकार सीमा से बाहर की बन जाती हैं। इसी वजह से मैंने होठ दवा लिया था। जब तक जाकर मैं खुद न बताऊँ, तब तक उस ऊर्ध्वलोक में वे कैसे जानेंगे- जब यह कल्पना आती है तभी न इस तरह की बातें निकलती हैं? ऊपर से ही देखकर वे सभी बातें हमसे भी ज़्यादा समझते होंगे। ऐसी स्थिति में कहने के लिए भला क्या बच रह जाता है ? वास्तव में ऊपर से देख-देखकर उन्होंने इस दम्पती को आशीर्वाद दिया होगा। इसी से तो यह सब सुख-सन्तोषपूर्वक चलता रहा है। कुलदेवी वासन्तिका माता का तो अपार अनुग्रह इस पोय्सल वंश पर है। उन्हीं की देन है यह राज्य | उन्हीं माता के अनुग्रह से राज सन्तति फल-फूल रही है। यह महा सन्तति ऐसे ही समृद्धि की ओर बढ़े और सदा लोकहित की साधना करती रहे यही प्रार्थना तो हम करना चाहते हैं। यही हमारा आज का कार्य है। इनका दाम्पत्य एक आदर्श दाम्पत्य है। इसके फलस्वरूप वंशोद्धारक पुत्ररत्नों को देकर देवी ने अपनी अपार दया दर्शायी है। साथ ही कन्यादान की पुण्य प्राप्ति के लिए एक पुत्रीरत्न देने को भी कृपा की है। और क्या चाहिए? इसलोक और परलोक
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो : 45:3