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इधर अपनी आय के अनुरूप कुमार बल्लाल भी साधना करता रहा।
बम्मलदेवी का रूप आकर्पक तो था ही, लेकिन बहुत दुःखी जीवन से गुजरने के कारण कुछ-कुछ मुरझा-सा गया था। अब पोयसल राजमहल के अनुकूल आदर से उसका मन तृप्त हो गया था, सन्तोष से भर उठा था। मुरझाया हुआ मुख एक बार फिर कान्ति से चमकने लगा था। अश्वचालन की शिक्षिका बनने से उसका शारीरिक व्यायाम भी हो जाता था। रक्त-शुद्धि के कारण उसके शरीर के अंग-प्रत्यंग पुष्ट होकर चपक उटे थे। उसकी स्थिर दृष्टि सहज गाम्भीर्य से आकर्षक लगने लगी थी। देखते-ही-देखते यह बदलाव आ गया था। विट्टिदेव ने भी बम्मलदंवी का यह उमरा सौन्दर्य देखा ही होगा। अश्वशिक्षण के काल में दिन-पर-दिन विहिदेव से बम्मलदेवी का सम्पर्क भी बढ़ता जा रहा था। इस कारण बम्मलदेवी में भले ही किसी तरह के मनोभाव उत्पन्न हुए हों, आमने-सामने होने पर बिट्टिदेव का व्यवहार बिलकुल सहज ही रहा आया। उनमें किसी भी तरह का कोई मनोविकार नहीं दिख रहा था। बम्मलदेवी भी बहुत संयम से बरतती रही। एक साधारण प्रजा जिस तरह भक्ति-गौरव के साथ अपने प्रभु को देखती है, उसी "निल-गौरग की भावना :: तो परित लिया।
पट्टमहादेवी की शिष्या बनने से बम्मलदेवी और राजलदेवी बहुत लाभान्वित हुई। वास्तव में एक साधारण हेगड़े की पुत्री होकर भी वह राजपरिवार के आकर्षण का केन्द्र बनी हैं तो उसमें कुछ विशिष्टता तो होनी ही चाहिए-इतना ही वे अब तक समझती रहीं। शान्तलदेवी की वास्तविक शक्ति सामथ्र्य का उन्हें तब तक परिचय नहीं था। उनके उस उन्नत व्यक्तित्व की कल्पना भी वे नहीं कर सकी थीं। जब उन्हें संगीत, साहित्य, नृत्य शास्त्र. आयुर्वेद, इतिहास, पुराण, व्याकरण, अर्धशास्त्र आदि में उनके अपरिमित ज्ञान के सम्बन्ध में परिचय मिला तो दोनों भौचक्की-सी रह गयीं।
उनके साथ अपनी तुलना करके देखती तो उन्हें लगता था : "हम कहाँ और वह कहाँ! जन्मतः राजपरिवार की होने पर भी हममें ऐसी योग्यता कहाँ?" । ___ इसी बीच कुमार बल्लाल का जन्मदिन आ गया। इस अवसर पर महामातृश्री एचलदेवी ने कहा, "राजपरिवार की कुलदेवता वासन्तिका माता की पूजा करने के लिए सोसेकर जाना होगा । उस देवी की सन्निधि में ही मैंने पहले-पहल शान्तला को देखा था, सभी मन में अभिलाषा हुई थी कि इसे अपनी बहू बना लूँ। विवाह के बाद, चार कुलदीपक वंशांकुरों के होने पर भी, हमने उस देवी के पास जाकर आज तक अपनी भक्ति प्रदर्शित नहीं कर पायी। इसलिए वहीं उस देवी की ही सन्निधि में यह जन्मदिन मनाया जाए।"
पोव्सल रणधी को जयपाला पहनने की शक्ति देवी प्रदान करें-यह प्रार्थना
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 491