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वास्तव में मंचिदण्डाधिप ने इन दोनों का अपनी बेटियों की तरह पालन किया था। पोम्सलराज से बातचीत करने से पहले वह अपनी शक्ति को एक बार परख लेना चाहते थे। उन्होंने यह जानना चाहा कि उनके अधीन रहनेवाली सेना उनके साथ है या कल्याणी के चालुक्यराज के साथ । वास्तव में उनके पास प्रधानतया अश्वसेना थी । पल्लवराजवंशीया बम्मलदेवी अश्वपरीक्षा में निष्णात थी। इस वजह से उसका सभी घुड़सवार सेनानायकों से अच्छा परिचय था । वह खुद भी अच्छी घुड़सवार थी। इसलिए मंचिदण्ड से पहले अपना यह विचारो बताकर, उससे बातचीत करने के बाद, बोम्मलदेवी की मदद से सवारों के मनोभाव को जानने के लिए प्रयत्न करने का निर्णय किया। यह काम तो ऐसा है जिसे तुरन्त मन में आते ही नहीं कर सकते। अतः किसी से कुछ कहे बिना, वे सैनिकों की मनोवृति को, उनके झुकाव को परख लेना चाहते थे । इस कार्य में बड़ी सावधानी बरतनी होगी ।
वे इन बातों पर विचार कर ही रहे थे कि इतने में ख़बर मिली कि पोटसलों ने चेंगाल्वों को पराजित कर दिया हैं। इससे मचिदण्डनाथ के विचारों को पुष्टि मिली | कल्याणी के चालुक्यों की ओर विशेष झुकाव रखनेवाली अश्वसैन्य की टुकड़ी को अलग करके उन्होंने उसे कोक्लालपुर की सीमा की ओर रवाना कर दिया । उस तरफ से चालुक्यों पर धावा करने के लिए चोलों का आना सम्भव है । कल्याण तथा हडगति की ओर से दूसरी सेना भी उधर आ सकती है। दक्ष और शक्तिशाली, चुने हुए सैन्य की ही उस तरफ़ भेजने का आदेश चक्रवर्ती ने दिया हैं - यों कहकर सेना की उस टुकड़ी को उकसाकर उसे उधर भेज दिया था।
इसी बीच चालुक्य चक्रवर्ती को पोटसलनरेश क्ल्लाल के निधन की खबर मिल चुकी थी। यह ख़बर कल्याणी भी पहुँची थी। मचिदण्डनाथ को यह खबर दी गयी कि वे अपने अश्वदल को अरसीकेरे की ओर अग्रसर करें। शेष सेना बलिपुर की ओर से आकर सम्मिलित हो जाएगी। पोय्सलों को दबाकर झुकाने के लिए यह अच्छा मौका है। चक्रवर्ती की इस तरह की चाल को देख मंचिदण्डनाथ के मन में उनके प्रति एक असा भाव उत्पन्न हो गया। बम्मलदेवी और राजलदेवी चक्रवर्ती को शाप देने लगीं। अपने गौरव से सम्राज्ञी का गौरव बड़ा है और अपने प्राणों से सम्राट के प्राण अधिक मूल्यवान हैं - यही मानकर अपनी जान हथेली पर रखकर उनकी रक्षा के लिए प्राण तक होम देने के लिए जो सतत तैयार रहे, जिन्होंने शत्रुओं से लड़कर उन्हें विजय दिलायी, आज चालुक्य चक्रवर्ती उन्हीं पोटसलों पर हमला करें? बिना किसी कारण के चक्रवर्ती ने जो यह क़दम उठाया हैं उसका घोर विरोध करना ही होगा - अपने इस निर्णय की सूचना इन दोनों देवियों ने मंचिदण्डनाथ को दी ।
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 407