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न करें।" कहकर, "अप्पाजी, माँ, मुझे विदा दें।' कुछ जोर से शान्तला बोलीं।
अन्दर से माँ-बाप आ गये। मंगलद्रव्य और फल-पान देकर शान्तलदेवी को . विदा किया।
अतिथि भी हेग्गड़े दम्पती से आज्ञा लेकर फल-पान ले विदा होकर अपने मुक़ाम की ओर चल दीं।
सन्निधान आदि ने सभी बातों पर विचार कर यह निर्णय लिया : "आपत्ति न हो तो सवारनायक अनन्तपाल इन दोनों स्त्रियों को राजमहल के ही आश्रय में छोड़कर लौट जाएँ और फिर अपने दण्डनाथ के साथ आएँ। उनकी बलिपुर की यात्रा का परिणाम उन्हीं से जानकर, अन्तिम रूप से निर्णय लेने में सुविधा होगी।"
यह बात अनन्तपाल को बता दी गयी। अनन्तपाल ने अपने साथियों से चर्चा की और फिर वे अपनी स्वीकारोक्ति के साथ बमालदेखी और राजलदेवी को गजमहल में छोड़कर लौट गये। ___मंचिटण्डनाध का भाग्य अच्छा था। बलिपुर पहुँचन-पहुँचते उन्हें यह समाचार मिता-वहां के यातुक्य प्रतिनिधि कदम्ब तैलप को चालुक्य चक्रवर्ती की तरफ़ से कुछ दूसरे ही टंग का आदेश मिला है कि फिलहाल पोसली पर हमले के विचार को स्थगित रखा जाय। यह भी ज्ञात हुआ कि मालवों की तरफ़ से युद्ध की सम्भावना की सूचना मिलने के कारण वहां की संना कल्याणी की ओर गयी है; अतः वे अभी जैसे है वैसे ही वहां की निगरानी करते रहें यही पर्याप्त है। इस । समाचार के कारण मंचिदण्डनाथ वहीं से कुछ मानसिक प्रसन्नता के साथ लौटे थे। कुछ बहाना करके वे उनसे छूटना जो चाहते थे लेकिन अब उसकी जरूरत नहीं रही थी।
सवारनायक अनन्नपाल उनके लौटने की बाट जोह रहा था। उनके पहुंचते ही बेलापुरी की सारी बातें बतायी गयीं। सवारनायक और दोनों देवियों ने जो काम किया था उससे उन्हें तृप्ति भी मिली । अपनी सेना की एक छोटी टुकड़ी को वहाँ छोड़कर, शेष सेना को साथ लेकर वे बेलापुरी की और चल पड़े। जाते-जाते मचिदण्डनाथ ने कहा, ''सेना पीछे-पीड़े धीरे से आए, मैं आगे जाऊँगा और पोसल महाराज से मिलकर अपनी सेना पोसल राज में बेरोकटोक आगे बढ़ सके, इसके लिए अनुमति लेकर सन्देश भेज दूंगा।"
तदनुसार वे कहीं बीच में ठहरकर, दो दिन के भीतर बेलापुरी पहुंच गये और नियोजित रीति से महाराज से मिले । सवारनायक अनन्तपाल को वेलापुरी छोड़े
418 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो