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मेरी उनसे भेंट कंवल मन्त्रणागार में, राजनीतिक विषयों के बारे में मन्त्रणा करते यक्त होती है।"
“मूहों यह सब क्या मालूम उनकी व्यस्तता, अनिमित भोजन, लाराम कम इतना भाग मुझे मालूम है। पूड़ने पर यही एक छोटा उत्तर-'बहुत कार्य हैं।'
__ उनकी गति आप जानती हैं न? जिसे कहना है उसे छिपाएंगे नहीं। जो नहीं कहना है उस सम्बन्ध में मुंह खोलंगे नहीं।'
'सो तो ठीक है।"
भोजनालय में उनके पहुँचने पहँचते दासलो बम्भलनेवी और राजलदेवी को वहाँ ले आथी।
'मैं हाथ-पर धोकर भगवान को प्रणाम कर आती हूँ।" कहकर शान्तलदेवी वहां से चली गों। दासब्ब रसोर्टगृह में चली गयी।
बम्मलदेवी और राजलदेवी-दोनों को बिठाकर माचिकव्वे बेटी की प्रतीक्षा में खड़ी रहीं। सामने की कतार में एक कंतं का पत्ता लगा था, वहाँ हेग्गड़ी जा ट। शान्तलदेवी जगदी ही नोट आयीं। इन अप्रत्याशित जांतधियों के आगमन से जन्मदिन के इस शुभ अवसर पर सबको एक विशेष सन्तुष्टि हुई।
भोजन के बाद हेग्गड़ आराम करने के बहाने अपने कमरे में वर्ग गये। भाविकचे पान-पड़ी लकर चली गयीं। बाहर के आंगन में विटे गलीचे पर भट्टमहादेवी, व्रम्पलदेवी ओर गजलटवी आकर वैट, गी।
चहता पान-पई। तेकर आयी और इनके सामने रख दिया। उसमें तयार पान थे।
"लीजिए।'' कहकर शान्तलदेवी ने खुद एक पान लिया और मुंह में डालते हा सामने खड़ी चट्टला से कहा, "तुम भी पहले भोजन कर तो और पालकीवालों को भी करा दो। मुझे राजमन अल्टी लौटना है।"
चला ने कहा, 'मेरा भोजन हो गया, पालकी के ऋहार ले रहे हैं।" बम्मलदेवी और राजलदेवी ने भी पान-बीड़ा लिया।
"आपके सवारनायक ने जो खुले दिल से सारी बातें सुनायी थीं, उन्हें सन्निधान ने भझं बता दिया है। दो-तीन बातों पर हमें विशेष विचार करना है। पहली बात यह है कि आप लोगों की पोयसल सष्ट्र के प्रति निष्ठा स्थायी रहेगी या नहीं। दूसरी बात यह कि विगत में हमारे प्रभु के सिंहासनारोहण के अपने विषय को उन्हें न बनाने का जो निश्चय किया गया था, इसी बात से चालुक्य चक्रवती हम पर ऋद्ध हुए। आपको आश्रय देने पर तो पता नहीं आगे चलकर उनके मन में क्या-क्या विचार पेदा होंगे और उनकी चाल कैसी हो सकती है। आपके नायक के कहे अनुसार, ऐसा लगता हैं कि वे अभी हम पर हमला करने
11 :: पमहादेवी शान्तता : भाग दो