Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 413
________________ की तैयारी में हैं। ऐसी हालत में अब हम यह काम करें तो उनसे सदा के लिए वैर मोल लेना होगा। वर्तमान स्थिति में हमें चेंगाल्यों और चेरों का सामना करना पड़ रहा है जिसके लिए तैयारियाँ जारी हैं। सभी शक्तियों को केन्द्रित किया जा रहा है। इसी पृष्ठभूमि को लेकर हमें विचार करना होगा। वास्तव में, हम अभी तक जितनी अश्वसेना की आवश्यकता है उतनी जुटा नहीं पाये। आप जिस मौके पर आयीं वह उतना प्रशस्त नहीं। शान्तिपूर्वक विचार करने के लिए भी तो अवकाश नहीं है।" शान्तलदेवी ने कहा । "पट्टमहादेवी जी, अविनय क्षमा हो; सन्निहित आवश्यकता की पूर्ति हमारे दण्डनाथ के अधीन रहनेवाली विश्वस्त अश्वसेना से की जा सकती है। हमारे विचारों से जो सहमत नहीं, ऐसे सैनिकों को पृथक् करके अन्यत्र भेज दिया गया हैं। हमें आश्रय दें तो हमारी शक्ति पोसलों की ही शक्ति बनेगी। इससे कल्याणी के चालुक्यों के तात्कालिक हमले का विचार भी स्थगित हो जाएगा, क्योंकि अपनी योजना की सफलता के लिए उन्हें हमारे दण्डनाथ से ही नेतृत्व की अपेक्षा होगी। जब ऐसा नहीं होगा लो आप स्वयं परिस्थिति को समझ सकती हैं। अब रही दुश्मनी की बात बिना कारण द्वेष करनेवालों के विद्वेष का कोई मूल्य पोय्सल नहीं देंगे - यह पहले से ही जानी हुई बात हैं। आपके यहाँ आश्रय पाने के लिए हम आर्य इसके लिए अन्य कोई कारण नहीं, सिवाय इसके कि उनके अन्यायों में हमारा सहयोग न रहे। स्नेह और निष्ठा को मान्यता देनेवाले पोप्सल राज्य में हमारा जीवन सार्थक होगा - यह हमारा विश्वास है । अब रही यह बात कि हम अपने इस विश्वास का प्रदर्शन कैसे करें । सन्निधान के चरणों में अपना खून समर्पित कर सकते हैं कि हमसे द्रोह - चिन्तन न होगा ।" बम्मलदेवी ने कहा । " आपकी बातों में एक हार्दिक आवेग है। फिर भी निष्ठा के विषय में हमारा मन आश्वस्त हो यह जरूरी है। फिर इन सभी बातों पर सन्निधान प्रधानजी, मन्त्रिगण और दण्डनाथ आदि से विचार-विमर्श कर निर्णय करेंगे। भावोद्वेग से आविष्ट होकर कोई निर्णय कर लिया जाय वह किसी के लिए अच्छा नहीं। अच्छा, अभी मुझे शीघ्र ही राजमहल पहुँचना है।" कहती हुई शान्तलदेवी उठ खड़ी हुई । वे दोनों भी उठ खड़ी हुईं। बम्मलदेवी ने कहा, “जैसे हम अभी अज्ञात हैं, यह स्थिति ऐसी ही रहे, यही अच्छा है।" "इस बारे में आपको चिन्तित होने की जरूरत नहीं । चट्टला, पालकी को तैयार रखने के लिए कह दो, मैं अभी आयी।" शान्तलदेवी बोली । चला उस कार्य के लिए चली गयी। "हम इस आश्वासन के लिए कृतज्ञ हैं। फिर भी नौकर-चाकरों का...' "आप लोगों को हमारी चहला के बारे में कुछ भी मालूम नहीं। आप चिन्ता पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो' : 437 י,

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