________________
एक पखवारे से अधिक समय हो गया था। इस अर्से में बम्मलदेवी और शान्तलदेवी के बीच युद्धक्षेत्र के विषय में कुछ बौद्धिक चर्चा भी हो चुकी थी। शान्तलदेवी को बम्मलदेवी के अश्वपरीक्षण एवं अश्वारोहण का परिचय भी मिल गया था। उधर चहलदेवी ने भी महारानी से आज्ञप्त हो इन दोनों स्त्रियों के बारे में अन्य सारी जानकारी जुटाना आरम्भ कर दिया था। इन सबके परिणामस्वरूप, कहा जा सकता है कि मंचिदण्डनाथ के सन्धान कार्य के लिए योग्य वातावरण तैयार हो गया था
इतने में पुनीसमय्या के नेतृत्व में कांगात्वों की तरफ़ से सम्भावित हमले का सामना करने हेतु नागिदेवाणा की मदद के लिए पर्याप्त प्रमाण में सेना भेज दी गयी थी। महाराज ने खुद जाने के विषय में अभी कोई निश्चय नहीं किया था। कारण था मंचिदण्डनाथ के आने की प्रतीक्षा। वहाँ उदयादित्य राजप्रतिनिधि की हैसियत से कार्य संचालक तो थे ही ।
मंचिदण्डनाथ के जाते ही महाराज विट्टिदेव, पट्टमहादेवी शान्तलदेवी और बम्मलदेवी - इन तीनों ने उनसे मिलकर विचार-विमर्श किया। सबसे पहले यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि पोसलों पर के हमले को स्थगित करने का कारण क्या हो सकता है? मंचिदण्डनाथ को इसका कोई कारण नहीं समझ में आ रहा था । कदम्ब तैलप से भी उसके बारे में कुछ विशेष बात मालूम नहीं पड़ी। इस सिलसिले में विचार करते हुए शान्तलदेवी को एक बात समझ में आयी तो उन्होंने उसे महाराज बिहिदेव के समक्ष रखा।
विट्टिदेव ने उनकी ओर देखा। बोले, "तो महारानी की यह राय है कि कवि नागचन्द्र जी ने समरसता लाने का प्रयत्न किया है। "
"वे तो पोप्सल राज्य से जाते वक्त इसी उद्देश्य को लेकर गये थे । इसलिए यह सोचना गलत न होगा कि वे कोशिश कर रहे हैं।" शान्तलदेवी ने कहा बिट्टिदेव हँस पड़े |
"क्यों, सन्निधान की यह बात जँची नहीं ?"
" पट्टमहादेवी के विचार पट्टमहादेवी की मानसिक भावनाओं के प्रतीक हैं। समरसता लाने की उनकी उत्कट इच्छा है। इस सामरस्य के सध जाने पर चालुक्य पिरियरसी चन्दलदेवी ने हमारे विवाह के समय जिस बात की सूचना दी थी वह भी सम्पन्न हो गयी प्रेम का यह आकर्षण ही तो हैं। इसी दिशा में मन विचार करने लगता है।" बिट्टिदेव बोलें ।
बिट्टिदेव की यह बात शान्तलदेवी को ठीक नहीं लगी। उनका चेहरा कुछ सुरझा सा गया । तुरन्त उन्होंने कुछ नहीं कहा।
बिट्टिदेव को भी एक तरह से कुछ उचित-सा नहीं लग रहा था। शान्तलदेवी
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 11