Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 411
________________ आपके जन्मदिन की याद आ गयी। अभी परमों दण्डनायिका एचियरका के साथ कुमार बल्लाल और हरियला दोरसमुद्र गये हैं। अभी लौटे नहीं। इससे आज नागपंचमी है इसका भी ध्यान न रहा। मुझे लो यह मालूम ही नहीं था। मामाजी यहाँ होते, या यहाँ पिरियरसी जी होती तो नागपंचमी की याद रहती। चलो, देर से सही, याद तो आ गयी-यही क्या कम भाग्य की यात है।'' शान्तलदेवी ने कहा। ___"अम्माजी, कुमार बल्लाल और हरियला तो अभी छोटे हैं। उन बच्चों को ही भेज दिया और तुम साथ न गयीं?" माचिकब्बे ने पूछा। "जन बच्चों ने जिद पकड़ ली, गाड़ी से उतरते ही नहीं थे।" "बेचारे! वहाँ तुम्हारी याद कर हट करने लगे तो एचियक्का की क्या दशा होगी:" "कितनी दूर है माँ? ऐसा हो तो लाकर छोड़ जाएँ। फिर इनके साथ रेविमय्या भी तो हैं।" "तब तो ठीक है। छोटे अप्पाजी और विनय को साय नहीं लाठी" "बच्चे सो रहे थे। और फिर जब से यह युद्ध की बात चली तव से बच्चों के साथ लगाव कुछ कम ही करती आयी हूँ।" “मतलब?" "यदि युद्ध ड्रिड़ा तो अबकी बार मैंने सन्निधान के साथ युद्ध में जाने का निश्चय किया है।" ''क्या कहा?" आश्चर्य से चकित हो माचिकदो ने पाछा। 'सब बातें बाद में विस्तार से बताएंगे। अभी पहले भोजन का काम कर लें। अपनी बातों में हम इन अतिथियों को भूल बैठे हैं।" कहकर मारसिंगय्या ने बात का रुख ही बदल दिया। इतने में दासध्ये ने आकर बताया, "भोजन तैयार है!'' माचिकव्ये ने कहा, "दासब्बे, इन्हें स्नानागार दिखाओ।" दोनों अतिथि दासब्बे के साथ स्नानागार गयीं। इसकं बाद हेगड़े दभ्यती और शान्तलदेवी रसोइंगृह के सामनेवाले भोजनालय में आये। चट्टलदंवी परात लेकर अन्दर चली गयी। चलते-चलते माचिकब्बे ने कहा, "अम्माजी, आजकल मालिक कुछ भी नहीं बताते । मुझे तो इस चुद्ध के बारे में या बच्चों के दोरसमुद्र जाने के विषय में कुछ भी मालूम नहीं।" "अप्पाजी और हरिचला के दोरसपट्ट जाने की बात तो उनको भी मालूम नहीं । वास्तव में पिताजी अभी एक पखवारे से सौध या अन्तःपुर में आये ही नहीं। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग टो :: 41

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