Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 405
________________ पर नियुक्त रायण ने जितनी सफलता की अपेक्षा की थी उतनी सफलता उन्हें नहीं मिल पायी थी। इस पर विचार-विमर्श हो ही रहा था कि सवार नायक अनन्तपाल ने आकर प्रधानजी से भेंट की और अपने आने का उद्देश्य तथा मंचिदण्डनाथ के आशय को संक्षेप में बताकर महाराज का भी सन्दर्शन किया । अनन्तपाल ने खुले दिल से सन्निधान के समक्ष सारी बातें रखीं। बिट्टिदेव ने सब-कुछ बड़े ध्यान से सुना और सुन लेने के बाद भी उन्होंने 1 प्रत्युत्तर मं कुछ कहा नहीं। जो कुछ सुना, उस पर ही सोच-विचार करते रहे। कुछ देर बाद बोले, "नायकजी, इस विषय पर सुनते ही निर्णय करना कठिन है। आपने तो खुले दिल से अपने विचारों को स्पष्ट किया है। फिर भी इन बातों पर अच्छी तरह से सोच-समझने की आवश्यक ने फुकुम का जा सकता | विचार करने के लिए कुछ समय चाहिए। आप कहाँ ठहरे हैं? यह बात प्रधानजी जानते हैं नः हम बाद में कहला भेजेंगे ।" · "हमारी इस योजना पर सन्निधान की स्वीकृति हम लोगों के हित की दृष्टि से अनुकूल होगी। मैं इसी निश्चय के साथ यहाँ आया हूँ कि सन्निधान की स्वीकृति प्राप्त करके ही लौहूँगा । मंचिदण्डनाथ बातचीत करने में भी बड़े कुशल हैं। फिर भी यदि उनके विचार राजा या उनके प्रतिनिधियों को ठीक न जँचें तो हमारी स्थिति बुरी होगी। उस ओर ग़लतफ़हमी रहे और इस ओर हमें आश्रय भी न मिल सके ऐसी हालत न हो। इसलिए चाहे समय कितना भी लगे, में प्रतीक्षा करूँगा । स्वीकृति देने का अनुग्रह करें।" “पोव्सल राज्य में आश्रय पाने की इच्छा लेकर आनेवाले कभी निराश न होंगे। परन्तु पहले इस बात का निश्चय तो हो कि वे निष्ठावान हैं। हम आश्वस्त तो हों कि इनसे पोय्सल राज्य की कोई हानि नहीं होगी।" "हम सब तरह से वचनबद्ध होने के लिए प्रस्तुत हैं ।" "पहले भी जो-जो आये उन सबने यही कहा है। किन्तु उनमें कुछेक ठीक नहीं निकले। ख़ैर, अभी यह सब छोड़िए। अब आप विदा ले सकते हैं।" कहकर बिट्टिदेव मन्त्रणागार से चले गये। सवारनायक अनन्तपाल अपने मुक़ाम की ओर चल दिये। इसी बीच चम्मलदेवी और राजलदेवी दोनों हेग्गड़ती माचिकब्बे से मिलने उनके घर, वहीं राजमहल के अहाते में गयी थीं I गड़ती माचिकब्जे केवल इतना जानती थीं कि ये उस सवारनायक की तरफ़ की हैं जो सन्निधान से मिलने आये हुए हैं। उन्हें किसी और बात की या मिलने के उद्देश्य आदि की कुछ भी जानकारी नहीं थी। हेग्गड़े के घर का दरवाजा तो अतिथियों के लिए सदा ही खुला रहता है न? आते ही उन्हें सन्तोषपूर्ण स्वागत पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो 409

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