Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 404
________________ यह सुनकर मंचिएण्ड । ने पूष्ठः, इरका यही 1 ला, हि साट् . की आज्ञा का पालन नहीं करेंगे। यह सूचित करना होगा?" "इसके पहले यह जान लेना होगा कि इस विषय में पोय्सलों के क्या विचार हैं। अभी हम तटस्थ हैं। कहीं ऐसा न हो कि इधर अविनीत भाव सूचित कर, उधर से हमें स्वागत न मिले! तब हम न इयर के रहेंगे, न उधर के।" यम्मलदेवी ने कहा। ''तो फिर?'' "अब हमें दोनों तरह की बातों पर विचार करना होगा। एक, पोसलों को समझना है और दूसरी बात, वर्तमान स्थिति में कुछ कारण बताकर सेना को न 'मेज सकने की खबर चक्रवती को देना है।" “सा तो ठीक है। पर यह काम करे कौन?" 'मैं वेलापुरी जाऊँगी, सवार नायक साहणी अनन्तपाल के साथ। आप बलिपुर हो आइए। नहीं होगा?" बम्मलदेवी ने कहा। "राजलदेवी को यहाँ अकली छोड़कर चले जाएँ?" "दीदी के साथ बहिन रहेगी। आप चिन्ता न करें।" बम्पलदेवी ने कहा। तदनुसार यात्रा आरम्भ हुई। वे वेलापुरी पहुंचे ही थे तब तक उदयादित्य अपनी पत्नी के साथ यादवपुरी जाकर दक्षिण-पश्चिम की ओर की गतिविधियों का निरीक्षण करने लग गया था। हेगड़े सिंगिमय्या भी उसकी सहायता के लिए वहीं थे। किसी तरह की गड़बड़ के बिना वहीं के कार्य चल रहे थे। मन्त्रणा-सभा के निर्णचों के अनुसार सैनिक शक्ति को बढ़ाने के लिए यत्र-तत्र सैनिक शिक्षण केन्द्र चलने लगे थे और नये कर-विधान के अनुसार, लोगों से कर मिलने लगा था। इस नूतन कर-विधान से जनजीवन में किसी तरह की असन्तुष्टि का वातावरण नहीं दिखाई दिया था। प्रत्येक गाँव का पटवारी और ग्राम-घटकों के हेगाड़े सीधे राजधानी से स्फूर्ति पाकर लौटे थे न? पोय्सल राजवंश के प्रजाप्रेम, उदारता आदि का गुणगान करके, पोयसल द्वेषियों के बारे में क्रोध को बढ़ाकर, राष्ट्र की रक्षा करना प्रत्येक का कर्तव्य है और राज्य के लिए सब तरह से त्याग करने के लिए तैयार रहना है, तथा अब जो नये कर वसूल किये जा रहे हैं उनका विनियोग राष्ट्र की उन्नति के लिए ही हो रहा है, आदि सभी विषयों की जानकारी ग्रामीण पटवारियों तक सभी को अच्छी तरह समझा देने के कारण, प्रजा की सम्मति पाने में विशेष सफलता मिली। साथ ही, प्रत्येक ग्राम के नवयुवकों को सैनिक शिक्षण के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा था। अश्वबल को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की राजमहल की अभिलाषा अपेक्षित रीति से सफल नहीं हुई थी। इसका कारण उत्तम अश्वों का न पिलना था। इस कार्य 406 :: पगहादेची शान्तला : भाग दो

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