Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 400
________________ रायण को इस कार्य पर नियोजित किया गया और उसे दण्डनाथ के पद पर रखकर तरक्की दी गयी । जंगल से हाथियों को पकड़ने तथा उन्हें पालतू बनाकर काम में लाने योग्य तैयार करने के लिए महावतों का एक जत्था ही नियोजित हुआ । "गजपवार और राष्ट्र-रोधक इन दोनों में निकट सम्पर्क होने पर मिलनेवाले फल का स्वरूप ही कुछ और है। अब तक हमारे राष्ट्र के बहुत से हग्गड़े और पटवारी आदि लोगों की महाराज का दर्शन ही न हुआ होगा। सम्भव है कि कइयों ने राजधानी तक को न देखा हो। इन लोगों को राजधानी में आने और सन्निधान को निकट से देखने के लिए मौका मिले तो उनके मनों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ेगा। वे ही तो असल में राष्ट्र की शक्ति का मूलस्रोत हैं। उनको निष्ठा ही राष्ट्र की प्रगति के लिए बुनियादी ताकत है। इस बात को सन्निधान स्वयं उन्हें समझा तो उसका दस गुना प्रभाव उन पर पड़ेगा। साथ ही, गाँव-गाँव से ग्रामीण युवकों को चुनकर सैनिक शिक्षण के लिए भेजने का दायित्व भी सन्निधान स्वयं उन्हें समझा सकेंगे।" पट्टमहादेवी की इस सलाह के अनुसार, राष्ट्र के हग्गड़े तथा पटवारी आदि सभी लोगों को एक सभा रानी में ही नाणी गयी। इस सभा में सभी विषयों के बारे में स्वयं सन्निधान ने विस्तार के साथ समझाया भी। दादाय तथा अन्य सभी तरह के धान्य कर आदि को राजादाय के रूप में खजाने में जमा करने तथा उसके विनियोग के तौर-तरीके आदि सभी बातों को विस्तार भ बतलाकर वर्तमान स्थिति में राष्ट्र की गतिविधि का परिचय भी कराया गया। राष्ट्र की प्रगति के लिए निस्पृह एवं निष्ठावान रहकर राष्ट्र की प्रगति की साधना करने में उनकी कितनी बड़ी भूमिका है यह भी सबको समझाया और बताया कि वही राष्ट्र की रीढ़ हैं। खजांची, दण्डनाथ, प्रधानजी, सन्निधान स्वयं और पट्टमहादेवी- इन सबके भाषण सुनकर उन्हें प्रत्यक्ष देखकर हेगड़े और पटवारी आदि सभी में एक नया उत्साह भर उठा। उनमें अनेक लोगों ने राजधानी को पहले देखा भी न होगा। राजमहल के कुछेक अधिकारियों ने ही सम्भवतः उनसे भेंट और बातचीत की होगी। परन्तु बहुत प्रमुख प्रधानजी, मन्त्रिगण, दण्डनाथ जैसे उच्च अधिकारी वर्ग को इन सभी ने देखा हो यह कहा नहीं जा सकता। देखा भी हो, लेकिन उनके साथ बातें भी की ही यह भी नहीं कहा जा सकता। कभी किसी ने इशारा करके दिखाया हो कि ने ही प्रधान गंगराज हैं तो देख लिया हो। कुछ लोग ऐसे भी जिन्होंने निकट से देखा था और बात भी की थी। परन्तु बहुसंख्यक लोगों ने राजधानी को देखा ही नहीं था। तो फिर इनसे भेंट ही कैसे की होगी? इस सभा के कारण स्वयं महाराज और पद्महादेवी तथा अन्य उच्चस्तरीय 404 पट्टमहादे शान्तला भाग ।

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