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होती हैं, इसीलिए इस तरह बेसुरा राग अलापनेवालों को अलापने दें और इस राग को छेड़नेवाले को छेड़ने दें-यों कहकर हम चुप बैठे रहें तो यह अच्छा न होगा। उनका मुँह बन्द करना होगा, तार छेड़नेवाले उस हाथ को रोक रखना होगा। इसलिए मुझे सन्निधान के लिए गरुड़ बनकर आत्मार्पण करने की अनुमति प्रदान करें; मेरी इस प्रार्थना को मान लें।" बिट्टिदेव ने कहा। __बल्लाल गरज उठे, “छोटे अप्पाजी!" उनकी आँखें लाल हो उठीं। होठ फड़कने लगे। छाती हाँफने लगी।
कभी इतनी ऊँची आवाज्ञ से न बोलनेवाले भैया के स्वभाव से परिचित बिट्टिदेव इस प्रतिक्रिया को देख अकचका गये। एकदम वह भी बात को आगे न बढ़ा सके। चुपचाप दालाल की ओर देखते हुए बैठे रहे।
थोड़ी देर तक बल्लाल उसी तरह सिर झुकाकर बैठे रहे। हॉफना कुछ थप गया तो एक दीर्थ निःश्वास के साथ धीरे-से सिर उठाया और कहा, "छोटे अण्णाजी, पास आओ, यहां बगल में बैठो।'
विद्रिदेव ने वैसा ही किया। उसके बाद कन्धे पर हाथ रखकर बल्लाल बोले. "छोटे अप्पाजी, तुम मेधावान हो, मेरा विश्वास था कि सभी हालात से परिचित हो। परन्तु वह दीक धारणा न लगी। इसीलिए उद्विग्न हो उठा। तुम्ही बताओ, व्यक्ति प्रधान है या राष्ट्र बताओ?''
"राष्ट्र का प्रतीक रूप व्यक्ति भी उतना ही प्रधान है जितना राष्ट्र।" ''राष्ट्र शाश्वत हैं या व्यक्ति?" "राष्ट्र। राष्ट्र के जीवन में व्यक्ति का जीवन एक अंश मात्र है।"
"ऐसी दशा में तुम्हें यह समझना चाहिए कि राष्ट्र ही सबसे प्रधान है। हम अपने स्वास्थ्य से हम स्वयं ठीक-से परिचित नहीं हो पा रहे हैं। मन प्रायः अशान्त ही रहता है। इसके फलस्रूप हम जल्दबाजी में कुछ कर बैठते हैं। सोच-विचार तक नहीं करते कि अमक काम करना चाहिए या नहीं, ठीक है या नहीं। इसलिए अन्तःपुर से बाहर निकलकर सम्पर्क करते रहने का साहस नहीं करते। अन्तःपुर में जो भी अविवक होता है उसका फल व्यक्तिगत होता है। ब्रह्मा भी अन उसका निवारण नहीं कर सकता। हमारे भरोसे पोयसल राष्ट्र की कोई भलाई नहीं हो सकती, इस बात को हम अच्छी तरह जान चुके हैं। नसों की दुर्बलता व्यक्ति को कितना हीन बना देती हैं, यह हमारे अनुभव में आ चुका है। हमारी राय में अब राष्ट्रहित की दृष्टि से तुम्हाग रहना बहुत ही आवश्यक है। इस बात को तुम भी जानते हो। परन्तु केवल भाई समझकर भ्रातप्रम के कारण, तुप भी इस तरह विवेकशून्य कार्य करने पर उतारू हो जाओगे इस बात की मैंने कल्पना तक नहीं की थीं। तमने कहा कि इस पर शान्तला भी सहमत है। माँ और शान्तला दोनों
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: :11