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हवा बदलने से शीया माय-लाभ होगा। इसके लिया या प्रयत्न अच्छा ही है।" -
पद्मलदेवी ने कहा, “अगर पण्डितजी ने यह कहा है तो वह करना ठीक है। चाहे कोई साध जाए या न जाए मैं तो सन्निधान के साथ जाऊँगी ही।''
एचलदेवी ने प्रकारान्तर से कहा, "कोई साथ न रहे। उन्हें एकान्त की आवश्यकता है, यही पण्डितजी की राय है।''
सन्निधान की देखरेख कौन करेगा। इस उम्र में यह सारा भार यदि आप पर लाद दें तो दुनिया क्या कहेगी? कल लोग हमारी निन्दा करेंगे। यह आरोप मुझ पर लगाएंगे तो मैं शिकार बनने के लिए तैयार नहीं।'' पद्मलदेवी ने कहा।
वल्लाल अभी तक सब सुनते हुए चुपचाप बैठे थे, एकाएक बोल उठे, "माँ, असाध्य को सामने का प्रयत्न कर रही हैं। हमारे स्वस्थ होने की उसे आवश्यकता नहीं । हमें निचोड़ चूसकर अपना अंग भर लेना ही उसकी इच्छा है। यदि वह वहाँ भी आती हैं तो जितने दिन जीवित रहना है उतने दिन यहीं रहकर गुजार देंगे। माँ, आपके दो और लड़के हैं। मैं आज आपका लड़का नहीं हूँ। उसका स्वत्व बनकर रह गया हूँ। जितनी जल्दी हो वह मुझे लूट ले। अब इस तेलापुरी की यात्रा की बात ही छोड़ देवें।" कहकर आगे बात करने के लिए अवकाश न देकर वहाँ से चले गये।
वह चामला के अन्तःपुर में न जाकर पट महादेवी के अन्तःपर में गये और पलंग पर चित पड़कर लेट गये।
"होनेवाले अच्छे काम को न होने देकर अपने ही पैरों पर कल्हाड़ी मार ली इस हठवादिता से।' बोपदेवी ने कहा।
"मैंने कौन-सी ग़लती की पति के साथ रहने का अधिकार पत्नी को नहीं हैं क्या: लनके स्वास्थ्य के विषय में माता को हमसे भी अधिक क्या आसक्ति है: एक बेटा गया तो दो और बेटे हैं। पर हमारी क्या गति हो? बच्चों पर माँ का प्रेम हो सकता है। यह मान्य है। वही प्रेम पत्नी को पति पर नहीं होना चाहिए। कन्या का दान कर देने के बाद वह अपनी नहीं, वैसे ही विवाह के बाद लड़के पर पत्नी का अधिकार होता है। इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए। जब तुम दोनों ने यह कहा कि वे कहीं भी रहें, तभी मैं समझ गयी कि उनके प्रति तुम्हारी श्रद्धा कितनी है। अपने लिए उन्हें बचा लूँगी और उसका लाभ आप लोगों को भी हो तो मुझे कोई दुःख नहीं। पण्डितजी से बातचीत करते वक्त हमें भी धुना रोते तो क्या हो जाता? कुल मिलाकर यही निष्कर्ष हुआ कि हम विश्वसनीय नहीं। जब हम पर विश्वास नहीं तो हम भी उनपर विश्वास क्यों करें?' कहकर पद्मलदेवी वहाँ से सीधी चामला के अन्तःपुर में गयीं। वहाँ पति को न पाकर नौकरानी से पूछा तो उसने बताया कि वे पट्टमहादेवी के अन्तःपुर
384 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो