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में ही हैं।
"ऐसा हो तो सन्निधान में विवेक जगा है। इसीलिए व्यंग्य करते हुए अपनी माँ से कहा था कि तुम्हारे दो लड़कं और हैं। मेरे पतिदेव बहुत ही अच्छे है, यों कह उसने बड़ी ही खुशी से अपने अन्तःपुर में प्रवेश किया और पति के पास जा बैठी। उनका सिर सहलाती हुई बोली, 'सन्निधान से बिना पूछे स्थानान्तरित करने का निर्णय करनेवाले वे कौन होते हैं। इसलिए सन्निधान का यह कहना बहुत ठीक हुआ कि बेलापुरी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दें।"
"हो, बेलापुरी में जाकर मरने से यहीं रहकर मरें, इसलिए हमने यह बात कही।'
तो बेलापुरी ले जाकर वहाँ समाप्त कर टालने का षड्यन्त्र किया था? यह वात सन्निधान को मालूम हो गयी थी?"
बल्लाल तनकर खड़ा हो गया और पूरी शक्ति लगाकर जोर से उसके गाल पर थप्पड़ मारकर गरज उठा, "मुँह बन्द करोगी या नहीं!"
बह इस थप्पड़ के आघात को सह न सकी, 'हाय दैया करती हुई पलंग पर से लुढ़ककर नीचे जा गिरी। गिरने से सिर पर बाध लग गया और खन बहिने लगा। नौकगनी भागी-भागी आयी। दूसरे ही क्षण यह खबर समूचे राजमहल में फैल गयी। सब उधर दौड़े आये। पण्डितजी को बुलाने के लिए उनके पास खबर भेज दी गयी।
उसे उठा ले जाकर दूसर स्थान पर लिटाया गया। पद्मलदेवी के माथे के एक छोर पर घाव लगा था और वहाँ से खून निकल रहा था। उसके कपाल पर बल्लाल की उँगलियाँ उभर आयी थीं।
बल्लाल के बैठे रहने का रंग-ढंग देख, इर के मारे सब मूक बने खड़े थे। एचलदेवी बेटे के पास गयीं और कन्धा सहलाती हुई बोली, “अप्पाजी, अब सो जाओ।"
उन्होंने “आँ!" कहकर चारों ओर नजर फेरी। माँ बोली, "अप्पाजी, तुम थक गये हो । सो जाओ बेटे! अभी तुम्हें आराम की जरूरत है।' कहकर जबरदस्ती उन्हें सुला दिया। "छोटे अप्पाजी, पण्डितजी के आने का वक्त हो गया है न? यहाँ किसी को आने न दो; समझे?' बिट्टिदेव से बोलीं।।
वहाँ जो लोग थे सब बाहर आ गये। स्त्रियाँ अपने-अपने अन्तःपुर में चली गयीं। अकेले घिहिदेव राजमहल के द्वार पर पण्डितजी के आगमन की प्रतीक्षा में खुड़े थे। उनके आते ही उन्होंने संक्षेप में सारी हालत बता दी। उनको 'भी साथ लेकर जहाँ बल्लाल थे वहाँ आये।
पण्डितजी को देखते ही बल्लाल ने कहा, "पण्डितजी, अब आपकी दवा का
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: RS