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मगर हमको ख़बर नहीं सो भी वैद्यजी से मालूम करना था?" एचलदेवी ने कहा । कल शाम के बाद अचानक ही स्वास्थ्य बिगड़ गया। वैद्यजी ने कहा कि मुझे यहाँ से हिलना नहीं हैं, उन्होंने भी भरोसा दिया है। कल रात से अव बहुत अच्छी है । सुबह से एक ही बात कह रही है, "राजमहल ले चलिए।" दोपहर की राजमहल जाने से पहले वैद्यजी यहाँ आने की बात कह गये हैं। अब उनके आने के बाद, उनसे पूछकर अगर ले जाने को कहते तो ले आना चाहता था । इतने में सन्निधान ही यहाँ देवी प्रेरणा से पधार गयी हैं । हम बड़े भाग्यवान हैं। कि सन्निधान की कृपा के पात्र बने।" यों कहते गये दण्डनायक अब तक वे दण्डनायिका के कमरे तक पहुंच चुके थे। उन दोनों का चिट्टिदेव, पद्मला, चामला और बोपदेवी ने अनुसरण किया।
किवाड़ को सरकाकर मरियाने अन्दर गये और अपनी पत्नी से कहा, "महामातुश्री मन्निधान यहीं पधारे हैं। तुम चाहती थीं कि राजमहल जाएँ । राजमहल ही यहाँ आया है।" इतने में एचलदेवी अन्दर आ चुकी थीं ।
पायाने उनके बैठने के लिए आसन ठीक कर ही रहे थे कि इतने में एचलदेवी ने कहा, "रहने दीजिए। अभी इस उपचार की जरूरत नहीं ।" वह पास की एक आसन पर बैठ ग 7 GR1 ARM at 1 बिहिदेव उस आसन पर बैठ गये ।
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चाम अपनी ही आँखों पर विश्वास न कर सकी। एकटक महामातृश्री को देखती रह गयी । चन्दलदेवी के यहाँ जा सकनेवाली बात्सल्यमयी माता का यहाँ आने में आश्चर्य ही क्या हैं? परन्तु सद्यः इस परिस्थिति में खुद भी जाते तो भी महामातृश्री का दर्शन पाना जहाँ सम्भव नहीं लग रहा था वहाँ वे स्वयं आकर दर्शन दें - इस बात ने उसे एक बड़े भ्रम में डाल दिया था। वे अप्रार्थित होकर जाय तो इस पर विश्वास ही कैसे कर सकते हैं? ऐसी स्थिति में भी उसमें हर्ष का संचार हुआ। वह पलंग पर उठकर बैठ गयी और उतरने का प्रयत्न करने लगी । दण्डनायेका जी, आप चुपचाप लेटी रहेंगी तो हम यहां रहेंगी। ऐसे थक जाएँगी तो हम चले जाएंगे।"
"वैद्यजी ने भी यही कहा है। यह मानती नहीं।” मरियाने ने बीच ही में
कहा :
"लेटी ही रही। उठ कहाँ सकती थी? सन्निधान के दर्शन ने मुझे इतनी शक्ति दी कि उठकर बैठ गयी। मुझे बैठी रहने की अनुमति दें।" यों रुक-रुककर बोली । फिर कमरे में के प्रत्येक व्यक्ति को एक बार देखा और फिर एचलदेवी की ओर मुड़कर कहा, "मुझे सन्निधान से कुछ बात करनी हैं, दूसरे लोग न रहें तो अच्छा ?"
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो: 235