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असर गर्भस्थ सन्तान पर पड़ता है। इन सब चिन्ताओं को छोड़कर हँसी-खुशी से रहें।" ___ "एसी बात कहनेवाले भी यहाँ नहीं रहे, दीदी। दिन में हजार चार आपकी याद करती थी।"
"अथ तो आ गयी हूँ न! सन्निधान और ग़जासाहव के आने तक मैं यहीं रहेगी।"
"आप राजमहल में ही ठहरती तो अच्छा होता।"
"कहीं भी रहूँ एक जैसा है। यदि मेरी माताजी या होती तो मैं यहीं ठहरती। पिताजी अकंलं हैं। राजासाहब ने भी वहीं रहने के लिए अनुमति दी है। रोज़ आती-जाती रहूँगी। आपकी भाभी तो यहीं रहेंगी न? अब उठिए, सब पटरानी जी के डॉ स"
शाकाहा! तीनों पटरानी पद्यलदेवी के यहाँ चली गयीं।
छोटी बहिन के यहां शान्तलदेधी के जाने की बात इनको मालूम हो गयी थी। इसमें उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा। फिर भी शान्तलदेवी के प्रति प्रेमभाव के कारण उन बहिनों ने अपने उस असन्तोष को दवाकर समय गुजारा ।
अन्दर प्रवेश करते ही पचलदेवी दोली, "आओ, झान्नन्ना । सन्निधान ने युद्ध में जाने के पाने की यह बताया था कि तुम यहाँ आओगी। धाग्यपुर की आबोहवा अष्टी तगी-सी लगती हैं। कर चुस्त-सी लग रही हो। चेहरे पर भी कुछ अधिक लालपन आ गया है।"
सा कुछ नहीं, जैसी धी वैसी ही हैं।"
"ऐसा कैसे हो सकता हैं? तुम हो, राजा हैं, हमेशा का साथ । तब काहे की चिन्ता? हमारी वात ऐसी नहीं। देखो, तुम आची हो-यह इस अन्तःपुर का भाग्य है। भावी राजमाता भी पधारी हैं।' चामलदेवी ने कहा।
यह सन शान्तला कुछ असमंजस में पड़ गयी। फिर भी उसने कहा, "वैटिए दण्डनायिका जी, रानीजी आप भी बैंटिए।" करती हुई शान्तलदेवी भी बैट गयी ।
थोड़ी देर तक मौन छाया रहा। हाट में शान्तलदेवी ने खुद ही घण्टी बजायी। दासी सुग्गला उपस्थित हुई। “पट्टगनीजी की आज्ञा है कि अब नाश्ता यहीं हो। कितना समय लगेगा:" शान्तलदेवी ने कहा। ___ सब तैयार है, अभी लायी।' दासी तुरन्त भागी गयी और नाश्ता की थालियाँ और दूध भरे कटोरे लेकर आ पहुंची।
शान्तलदेवी ने कहा, "मेरी एक बिनतो है। पटरानी जी और रानियाँ मुझे धमा करें। आते हुए ग़म्त में बाइबली का दर्शन कर मैंने प्रार्थना की कि सन्निधान बिनयी होकर शीघ्र लौटं और अभयहस्त वहाँ तक पसारकर यह आसीसें कि ये
५00 :: पद्रमहारा शान्तला : भार दो