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पूछा यदि लोग ऐसा कहने लगेंगे तो क्या करेंगे। उन्होंने उत्तर दिया, 'कहनेवालों , को कहने दो, उनको समाधान करने के लिए कह दूंगा कि मैंने पत्नी नहीं, रखैल बनाया हैं। यह कहकर उन लोगों का मुह बन्द कर दूंगा'।"
"तो मतलब यह हुआ उसे तुमसे बहुत प्यार है।" शान्तला ने कहा।
“बह सारी बात प्रवास करते वक़्त ही स्पष्ट हो गयी। उन्हें पता नहीं लगा कि मैं कौन हूँ। अपनी पली का गुणगान करते ही गये। मैं मी चिढ़ाती जाती थी। मैं कहती थी उस भ्रष्टशीला पर तुम्हें इतना प्रेम म्यों? जब मैं किक्केरी में नहीं दिखाई पड़ी तो यह समझकर कि शायद मैं वहाँ हूँगी, सीधे हमारी सेना में पहुँचे। वहाँ भी मेरा पता न लगा। उन्हें चिन्ता लगी होगी कि मुझे हो क्या गया ? उन्होंने यह भी अन्दाज लगा लिया होगा कि शत्रुसेना में गुप्तचरी का काम करने को. बिना चली गयी होगी। युद्ध समाप्त हो गया, तब भी उन्हें मेरा पता नहीं लगा तो उन्होंने सोच लिया होगा कि शत्रुओं ने पता लगाकर मुझे मार डाला होगा। इस तरह पता नहीं क्या-क्या बातें सोचकर भावावेश में मेरी प्रशंसा ही प्रशंसा करते गये। मैंने सहानुभूति दिखाकर कहा, 'इतनी होशियार स्त्री कहीं फंस सकेगी? क्रिसी तरह छूटकर ही आएगी। क्यों सोच में पड़ते हो वास्तव में उसी ने मुझसे इस जहर की बात कही थी, इसलिए कि तुम्हें कुछ तसल्ली मिले।' उन्होंने यह सब सुनकर पूछा, 'यह कैसे मालूम हुआ कि तहर की बात बतानेवाली वहीं हैं। उसके दायें गाल के गड्ढे से कुछ ऊपर एक कुल्थी के दाने के प्रमाण का तिल था?' मैंने कहा, 'हाँ, उसके केश-गुच्छ के नीचे गले के पिछले भाग पर चने के बराबर उभरा हुआ तिल भी था।' तब उन्हें मेरी बातों पर विश्वास हुआ। कुछ आशा भी बँधी।" चट्टला ने कहा।
"तुम मेरी बात मानो तो कुछ कहूँ ?' "कहिए।' "उसकी इच्छा है तो तुम परिवार बसा लो।" "हों, देखेंगे। शायद वही हो, कौंन जाने!'' चट्टलदेवी बोली।
बालों-ही-बातों में युद्ध के बारे में भी व्यौरा पूछ लिया शान्तलदेवी ने। उसने सब व्यौरा सुना दिया। जब उसने विट्टिदेव के चातुर्य का वर्णन किया तो शान्तलदेवी को लगा, काश मैं भी इस युद्ध में राजा के साथ रहती तो कितना अच्छा होता!" ___"रणभूमि में काम करनेवालों को रहना चाहिए। शस्त्रहीन वा बेकार लोग रहें तो बहुत-सी अड़चनें पैदा होगी। उसमें भी रानीजी रहेंगी तो उनकी रक्षा का कार्य प्रमुख बन जाता है। ऐसी हालत में शत्रु के आक्रपर्णी की ओर ध्यान देना कठिन हो जाता हैं। अगर आक्रमण करते भी रहें तय भी रानीजी की रक्षा की तरफ़ ही
पट्टमहादेवी शामला : भाग दो :: 519