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“पहले उन्हें रखबर कर दो।" प्रचलरंबी ने कहा। "उनकी वहाँ ज़रूरत नहीं। इलान के मुंह से आवाज आयो । सब कित होकर उनकी ओर देखकर चुप रह गये।
शीन ही चारूकीर्ति पण्डित आयें। परीक्षा की, दवा निकाली। चूर्ण शहद में घोलकर चटा दिया। किसी को भेज देंगे नो एक क्वाथ (आगष्ट भेज ड्रगा। उसे दिन में दो बार एक पखवारे तक इना है।" और कहा, “आज राल कोई आहार न दें। सन्निधान से कोई ज्यादा वातचीत न करें। सन्निधान को पूर्ण विश्रान्ति की आवश्यकता है। कल सवो तक पसीना निकलकर बुखार उत्तर जाय तो बाद में कोई खतरा नहीं। सुबह में एक काढ़ा बनाकर लाऊंगा। वातावरण शान्त और मौन रहें। किसी तरह को आवाज़ से उनका विश्वान्ति भंग हो सकती हैं। इस बात का सब लोग विशेष ध्यान रखें। सन्निधान जिसे नहीं चाहते उस पर जोर न दें।" कहकर वैद्य चले गये।
महाराज अस्वस्थ हो तो सवाल इंटे बिना रहेगा कैस: उनके सामने सवाल न उठाने की मनाही बंद्य ने की। वे अपना काम करके चले गये । बिट्टिदेव उनके साथ बाहर पाये।
वैद्य ने उनसे पूछा, "कोई ऐसी बातचीत हुई जिससे महाराज के मन का कुछ परशा हु हो।"
''मालूम नहीं। भोजन के बाद पमहादेवी के साथ, मुना कि कुछ समय रिताया। अगर कुछ ऐसी बातचीत हुई तो वहीं हुई हो। व्योग जानना है। विहिदेव ने पूछा।
"जरूरत नही, कष्ट लक्षण से नगते हैं कि उन्हें कल भानसिक आघात हुआ है। उनके लेटे रहने की रीति, अचानक चढ़ा हुआ बुखार, नज्ञ की विचित्र गति यह सब परखने से तो मुझे ऐसा ही लगता है। सन्निधान जिस पास रहने की अनुमति दें और चाहे वे ही उनके पास रहें। किसी भी स्थिति में उनके पास कोई रहे, यह आवश्यक है। सन्निधान के पास क्यों न कोई रानी रही आग?"
महामातृश्री ने रानी को बुलान की बात जर कही तो सन्निधान ने कहा, उन्हें यहां आने की जरूरत नहीं " बिट्टिदेव ने कहा।
पोसा है तो उनका सन्निधान सं दूर रहना ही बेहतर है। मैं सुबह आऊंगा।' कहकर वैद्यजी विदा हा। विमय्या वैद्यजी के साथ गया और वाथ
अरिष्ट ने आया। बैधजी के कहे अनुसार उस दिन क्वाथ एक बार पिलाया गया। वारी-बारी से बिहिंदेव और महामातृश्वी ने रात वहीं विताची। पहाराज कर बड़वाते हुए चुपचाप सायं पड़े थे। ऋछ देर नींद-सी लगती फिर जग जाते।
दोनों गनियों ने बिना नींद के ही रात बितायीं। उन्हें सन्निधान से मिलने
362 :: पट्टमहादश्री शान्तला : भा
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