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अन्धकाराच्छन्न दौरसमुद्र का राजमहल फिर जगमगा इठा ।
फलपूर्णिमा के दिन यादवपुरी में घोप्पदेवी ने एक लड़की को जन्म दिया । महाराज की अस्वस्थता की खबर केवल मरियाने को ही दी गयी थी। वह एक धार आये और महाराज के दर्शन कर पद्मला को कुछ उपदेश देकर यादवपुरी लौट गये। पण्डितजी के कहने से बोप्यदेवी को ख़बर नहीं दी गयी थी। बल्लाल की वीमारी, पद्मलदेवी और महाराज के घोच का वातालाप, उसके बाद घटी घटनाएँ आदि किसी भी बात की बाप्पदेवी को खबर नहीं थी। गर्भिणी सुखी रहे, प्रसव सही हो-३ : से ही रह जातीशी कोई खबर नहीं दी गयी थी। उद्देश्य सफल हुआ। सही प्रसव भी हुआ।
राजमहल को जब इस बात की खबर मिली तब महाराज स्वस्थ हो रहे थे। उन्हें शायद ऐसा लगा हो कि राजकुमारी का जन्म होना ही अच्छा हुआ। हो सकता है कि पद्मलदेवी को भी खुशी हुई हो।
पहाराज की यह बीमारी और उसके उन्मादावस्था तक पहुँचने का हाल आदि सभी बातें मालूम होने पर शान्तलदेवी और चामलदेवी को बहुत घबराहर हुई। पहले भी इस पद्मलदेवी की ही बातों की वजह से असमाधान हुआ था। अब भी इस सारी घटना का बही कारण बन गयी। उसे ठीक करना असाध्य है। उसमें करीब-करीब माँ के कुछ गुण आये है- यही उन दोनों को लग रहा था। उन दोनों को बोप्यदेवी पर विशेष शात्मीय भावना उत्पन्न हो गयी। इस बात पर उन्हें सन्तोष भी हुआ कि बोप्पदेवो भविष्य को सोचकर यहां से दूर रही, इससे ठीक प्रसव भी हुआ। वहीं रही होती तो सम्भव था अकाल प्रसव आदि अनहोनी ही हो रहती। ऐसी दुर्घटनाएँ न हो पायीं, यही एक समाधान था। इस सम्पूर्ण घटना में अपना कोई हाथ नहीं या तो भी वैद्य के कथनानुसार किसी के महाराज के पास न जाने के नियम का चामलदेवी ने निष्टा और संयम के साथ पालन किया था। महाराज की अस्वस्थता के बारे में परोक्ष रूप से जानकारी प्राप्त होती तो थी, फिर भी वह भगवान से यही प्रार्थना करती थी कि उन्हें शीघ्र अच्छा कर दें। उसकी इस मनःस्थिति से शान्तलदेवी बहत सन्तुष्ट थीं।
जब पद्मसदेवी की बाप्पदेवी की लड़की होने का समाचार मिला तो उसने जो सन्तोष प्रकट किया वह निम्न स्तर का था, इसे समझकर दोनों उसके प्रति कुछ असन्तुष्ट ही हुई। शान्तलदेवी ने चामलदेवी से कहा, ''प्रसव के बाद धच्या-जाया दोनों सुखी हैं न, इससे बढ़कर और क्या चाहिए। मां बनने की आकांक्षा रखनेवाली स्त्री की यह इच्छा तो सहज है; जब माँ बनी तो बच्ची या बच्चे की कल्पना कर
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 365