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लगता है कि वह भी इस षड्यन्त्र में शामिल है। पता नहीं उसे कौन सा लालच दिखाया गया है। जो भी हो, सबने मेरा साथ छोड़ दिया है। पिता से भी झिड़कियाँ दिला सकनेवाले लोग क्या नहीं कर सकेंगे? इसका कुछ-न-कुछ प्रतिकार करना ही होगा -पाला ने यह निश्चय किया। क्या करना होगा, इस पर सोचती ही रही। उसे कुछ सूझा ही नहीं। उस हालत में वह किसी से सन्नाह भी नहीं ले सकती थी; क्योंकि उसके मन में यह भावना बाई 1 चु
ब ह के है। वह सोचती कि अगर माँ होती तो कोई-न-कोई रास्ता निकाल सकती थी। वह होती तो मेरी यह हालत न हुई होती। खुद भी उमंग से उछलती और मुझे भी उमंग से भर देती। बल्लाल के साथ विवाह होने की बात जब स्वप्न की चीज़ बनी थी तब उसे माँ के प्रति एक असह्य की भावना आयी ज़रूर थी, परन्तु अब एकदम उसका गुणगान करने लगी। हमारी सहलियत के लिए बाक़ी सब लोग हैं, यह भावना जब बढ़ जाती है, तब ऐसा ही हुआ करता है। गुणगान करते रहने पर भी जब वह मदद करने के लिए आएगी ती नहीं। फिर भी उसका नाम स्मरण करने से रूपांते मिल सके तो अच्छा ही है न? मां का स्मरण करती हुई स्फूर्ति की आशा में पद्मला बैंटी रही। इतने में वर्धमान जयन्ती का पयं आ गया। ___इस पर्व में विशेष पूजा-अर्चा की राजमहल में व्यवस्था करनी धी। पुरोहित जो कुछ करना है, उस बताने के लिए आ गये। महामातृश्रीजी थी, इसलिए उन्हीं को तह सब बताकर राजमहल से जाने के पहले पट्टमहादेवी का भी संदर्शन करते गये।
वर्धमान जयन्ती के लिए राजमहल में विशेष अर्चना की व्यवस्था हुई थी। सभी इस कार्य में श्रद्धा-भक्ति के साथ जुट गये। सबका मन हर्षोल्लास से भर गया था। उस दिन की पूजा के प्रधान कर्ता ये महाग़ज बल्लाल और पद्मलदेवी। इसलिए इन दोनों को संग बैठना पड़ा था। भोजन के वक्त भी वैसी व्यवस्था होने के कारण साथ ही बैठे थे। भोजनोपरान्त आराम करने के लिए निकलते समय पद्मलदेवी ने कहा, "आज मन बहुत प्रशान्त हैं। पुरानी कई बातें याद आ रही हैं। सन्निधान से एक विनती करने का इरादा है। मेरे प्रकोष्ट में पधारने का अनुग्रह करें।" इसकी आँखों में दैन्य धा। इसका बल्लाल के मन पर प्रभाव पड़ा। इसके अलावा सुबह से एक साथ रहने से उसका भी शायद कुछ प्रभाव पड़ा था। इसलिए वह उसके प्रकोष्ठ में चले गये।
उन्हें पलंग पर बिठाकर पान दिया। और खुद भी पान खाने लगी। पान पूरा चबा लेने तक कोई बातचीत नहीं हुई। पैर पसारकर तकिये का सहारा ले बल्लाल लेटे रहे। पद्मलदेवी उनके पैर दाबने लगी। उस हाथ की गी लगने से बहुत समय तक वंचित रहने के कारण यह पैर दाबना सुखकर ही लगा होगा, यह कहने
पट्टमहादयी शान्तला : भाग दो :: 971