Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 365
________________ में उत्पन्न होता है। आज की रीति-नीतियाँ सार्वकालिक हैं, काव्य-रचना इसी आवरण में होती रहेगी, या कैसे कहा जा सकता है? बात पुरानी होने पर भी कहने का ढंग नया बनता है। इसलिए यह प्रसंग ऐसा ही रहे, मेरी इच्छा है। इस बात पर विश्वास करना भी कठिन है कि मेरा यह काव्य अपरिवर्तित होकर जैसा अब है वैसे आगे भी बना रहेगा। जैसे-जैसे नकल उतारी जाएगी, परिवर्तन भी होता रहेगा। नकल उतारनेवाले की त्रुटि के कारण या उसकी प्रतिभा के कारण मूल रूप बदल भी सकता है। इसलिए ऐसा ही रहे," नागचन्द्र ने कहा। एचलदेवी ने पूछा, ''कवि निष्ठावान जैन हैं। बालचन्द्र मुनिवयं के प्रिय शिष्य हैं। कर्नाटक के जैन कवियों ने जैन-गुराण ग्रन्थों की रचना करके गहुल उपकार किया है। हमारे छोरे अप्पाजी ने आपसे सीखे आदिपुराण, शान्तिपुराण और अजितनाथपुराण आदि की कथा मुझे सुनायी है। आप एक जैन-पुराण क्यों नहीं लिख सकते?" ___''बहुत समय पहले मैंने मल्लिनाथपुराण लिख रखा है। परन्तु उसमें बहुत परिष्कार की आवश्यकता है।'' "उस काम को जल्दी कीजिरा न!" एचलदेवी ने कहा। "जो आज्ञा। मरियाने दण्डनायक जी ने मुझ पर बहुत बड़ा अनुग्रह किया। उन्हीं के कारण मुझे पोय्सल राजाओं का आश्चय प्राप्त हुआ। यहां मैंने जितने दिन व्यतीत किये वे साधक रहे। यहाँ रहकर राजमहल के व्यक्तियों से लेकर एक सामान्य नौकर तक सभी लोगों के जीवन की रीति-नीतियों का परिचय पाने से मुझे काफ़ी अनुभव प्राप्त हुआ। काय के शरीर को पुष्ट बनाने में इस अनुभव से विशेष सहायता प्राप्त होगी। इससे समसामयिक प्रज्ञा मुझमें जाग्रत हुई है। कन्तिदेवी ने भ्रातृवात्सल्य से अपना सम्पूर्ण सहयोग देकर यह प्रमाणित कर दिया हैं कि बार-श्रीसम्पन्न रचनाकर मात्सर्यरहित और सहृदय होते हैं। वे एक महाकाव्य की रचना करके टेंगी तो सारस्वत लोक का बड़ा उपकार होगा। इस अभिनय बाग्देवी का नाम अमर हो जाएगा। इस प्रकृत सन्दर्भ में मैं उनसे प्रार्थना करूँगा कि वे एक महाकाव्य की रचना करें।" नागचन्द्र ने कहा। "भगवदिच्छा होगी लो काव्य-रचना हो जाएगी," क्रन्ति ने कहा। वर्धन्ती के इस अवसर पर चारुकीर्ति पण्डित, कवि नागचन्द्र और कन्तिदेवी को सम्मानित करने का निर्णय भी हुआ। निर्णय के अनुसार पण्डित चारूकीर्ति को 'बल्लाल जीवनरक्षक', कन्तिदेवी को 'अभिनय वाग्देवी' और कवि नागचन्द्र को 'कविता मनोहर' विरुद से अलंकृत किया गया और कंकण चूड़ी पहनाकर, दुशाल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया गया। यों कुछ महीने शान्ति से गुज़र गये। महाराज यल्लाल मानसिक-स्वास्थ्य के पट्टपहादेवी शान्ताला : भाग दो :: :6:/

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