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किसी राजकाज या अन्य तरह के कार्यों में समय नहीं देते किसी विषय को लेकर विशेष चिन्ता भी नहीं करते। यो ही समय व्यतीत करने से कुछ अच्छे विचारों की ओर महाराज का मन लगाने की बात सोचकर शान्तलदेवी ने यह अच्छा समझकर प्रतिदिन मध्यानान्तर कवि नागचन्द्ररचित रामचन्द्रचरतपुराण का पठन उसका अर्थ विवेचन एवं उस पर विचार चर्चा करने के कार्यक्रम का आयोजन किया। इस गोष्ठी में महाराज, रानियाँ, विहिदेव उदयादित्य एचलदेवी, शान्तलदेवी और कवयित्री कन्ति इतने ही लोग उपस्थित रहा करते। इस कार्यक्रम में बल्लाल कुछ नवीन स्फूर्ति से भाग लिया करते, जो उनके लिए आवश्यक भी था। फुरसत के वक़्त और कुछ न सांपकर काव्य के ही विषय में सांचा करते। इससे उनका उत्साह प्रतिदिन बढ़ता ही गया ।
"आपका काव्य उत्तम हैं प्रेरणा की मूल शक्ति हैं, यो होने
इतने में बल्लाल की वर्धन्ती भी आ गयी। तब तक रामचन्द्रचरतपुराण का वाचन भी समाप्त हो चुका था। विचार-यातां करते वक़्त कन्ति जो सवाल उठाती उसका उत्तर देना नागचन्द्र के लिए कुछ कॉटन होता था। कई एक बार उनकी सलाह के अनुसार उन्होंने कुछ इधर-उधर परिवर्तन भी किये। गुणपत्र और विमलसूरि की कृतियों ही आपकी पर भी विमलसृरि कृत रामायण का प्रभाव आपके है। बहुत विस्तृत रामकथा को संक्षिप्त बनाने में आपकी बुद्धिमत्ता विशेष रूप से प्रशंसनीय है। महाकवि पम्प की तरह श्रेष्ठ काव्य के निर्माण करने की आपकी अभिलाषा सफल हुई है। हम सब आपको अभिनव पम्प कह सकते हैं। परन्तु जब भी आप एक विषय को स्वीकार करें तो बदल सकते हैं। यह मुझे मालूम हैं कि कवि की स्वतन्त्रता को कोई छीन नहीं सकता। फिर भी वह विषय मूल से कुछ निम्न स्तर का सा लगता है, मूल के गाम्भीर्य की सीमा का उल्लंघन हुआ-सा लगता है।" कन्ति ने कहा ।
में है वह
"कौन-सा विषय आपकी ऐसा लग रहा हे?" नागचन्द्र ने पूछा।
"सीताजी के मोह में उन्मत्त रावण द्वारा प्रलोभन देकर उन्हें पाने के प्रयत्न के प्रसंग में संवाद की गम्भीरता कुछ ढीली हुई-सी प्रतीत होती है। मूल में जो गम्भीरता रही है उसे वैसे ही रहने देत ती ठीक होता!" कन्ति ने कहा ।
"मैं विमलसूरि की कृति का अत्यन्त ऋणी हूँ। उनके द्वारा निर्मित पात्रों के स्वरूप में परिवर्तन लाने की मेरी इच्छा नहीं। यह परिवर्तन नहीं, संग्रह है। उनके और हमारे समय के व्यवहार में बहुत अन्तर है। समकालीन रीति-नीतियों को छोड़कर कवि जी नहीं सकता। उसे उसी पुगने ढंग पर चित्रित करने पर तो कवि कृतक बन जाता है। समसामयिक रीति-नीतियां काव्य में समन्धित हो तभी काव्य में नवीनता आ सकती है। तभी लगता है, "हां, यह सहज है।" यही भाव लोगों
368 :: पट्टमहादेव। शान्तला भाग