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मेदभाव से अपनी सन्तान की देखना माँ का काम नहीं में लड़की है इसमें मेरी मां कभी दुःखी नहीं हुई। लड़के का जन्म न होने का उन्हें कभी दुःख नहीं मुआ।"
"सब ऐसा ही भमझती तो दुनिया की रीत ही और होती। यह सब जानकर भीमं खुद कही सुनी बातें सुनकर क्या से क्या बन गयी थी। फिलहाल भगवान इतनी कृपा करे तो काफी है कि उस पट्टमहादेवी को पहले एक लड़का दे दे !" वामदेवो बोली |
"आपको लड़का नहीं चाहिए।"
"कोन स्वी ऐसा कहेगी कि लड़का नहीं चाहिए। परन्तु पहले उसका लड़का हो जाए तो उसके जीवन का लक्ष्य सथ जाएगा। हम उसकी ईव्यों से बच जाएँगी। श्रम स्त्रियों को भगवान ने कैसे भी दुःख को सह लेने की शक्ति दे रखी है ! महाराज तो कठिन तों को नहीं सह सकेंगे। उसके सड़का हो जाय तो महाराज कभी बीमार न हो। हमारी मां न पहले से उसके दिमाग़ में ऐसी बातें भर टी है जो कहीं सड़ रही है। उसके मन में केवल ही बातें है कि महादेवी बने और उसका लड़का महाराज बने। इन दो बालों के अलावा उसके दिमाग में और कुछ हे नहीं
"बुराई करनेवालों के प्रति भी भलाई कर सकनेवाले कितने मिलेंगे?" "यह उपकार करने की बात नहीं में अपने को अच्छी तरह समझती हूँ । अपनी रक्षा और सुख के लिए तथा संविधान की मनःशान्ति के लिए उसने बढ़कर अच्छा कोई दूसरा मार्ग ही नहीं। इसमें उपकार करने की वृद्धि से अधिक स्वार्थ वृद्धि है। इस वजह से ये प्रशंसा सही नहीं है ।"
उपकार के बदले आपकार ही पानेवाले इस समाज में अपकार को दवा उपकार को माननेवालों की प्रशंसा होना सहज ही है। अच्छा, इस बात को रहने दें जब राजकुमारी के साथ बापदेवी यहाँ आएँगी तब हमें इस बात का खधाल रखना होगा कि महादेवी के मुंह से कोई व्यंग्य की बात न निकले और वहां जो कुछ हुआ इस बात की जानकारी उसे न दें - यही सूचना महामातृश्री ने दी मुझे भी यही ठीक लगता। इसलिए यहाँ को सब बातों को जाननेवालों का इस काम में सहयोग चाहती हूँ ।"
"इसमें मेरा पूर्ण सहयोग है। यदि वह ही कुछ छेड़कर जानना चाहे तो भी कुछ कहूँगी नहीं।" चाभलदेवी ने कहा ।
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यहां की परिस्थिति से परिचित सभी लोगों से आश्वासन पाने के बाद शान्तलदेवी रानी वोप्पदेती और राजकुमारी के स्वागत की तैयारी में लग गयीं । परियाने दण्डनायक के साथ बाप्पदेवी और राजकुमारी दोरसमुद्र पहुँचे। वैभव
15 पट्टादेवी शान्तला भाग दो
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