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कहा कि उसने षड्यन्त्र का पता लगाया। कैसे पता लगा सकी सो नहीं बताया। . बिट्टिदेवरस की कुशनमा वर्णन भाग्ने समय मा उन्माट का कोई भीर-छोर नहीं रहा। कहने के इस उत्साह में सब कुछ बता तो दिया, मगर सन्निधान के बारे में कुछ बताया नहीं यों समझकर उसने कहा कि चेंगाल्चों की सेना इतनी बड़ी तो नहीं इसलिए डाकरस दण्डनाथ और छोटे राजा दोनों ने सन्निधान को आगे जाने नहीं दिया। अगर उन्हें आगे जाने देतं तो ये क्या कोई साधारण योद्धा हैं? जग्गदेव के साथ युद्ध करते वक्त मैंने देखा हैं न इस तरह उनके युद्ध-कौशल का वर्णन कर समाधानोक्ति प्रस्तुत की।
एचलदेवी को राजमहल के विषय में जानना था। जब चट्टला की बात एक सीमा तक पहुँची जो उसको वहीं रोककर कहा, ''चट्टला, जाकर देख आओ कि सन्निधान मन्त्रणागार में ही हैं या अन्तःपुर में गये हैं."
"कुछ कहना था?" चट्टला ने पूछा।
"कुछ मत पूछो। अकेले में हैं क्या, देखकर आ। आय हों तो उनसे मुझे मिलना है।" एचलदेवी बोली।
चट्टला दख आयी। बोली, "मालूम हुआ कि आये काफ़ी वक्त हो गया।" "अकेले हैं या..." "अकेले हैं।" पाचलदेवी तुरन्त महाराज चल्लाल से मिलने चली गयीं। बल्लाल माताजी को आते देखकर उठ खड़े हुए। माँ का हाथ पकड़कर अपने पलंग पर बैठाते हुए बोले, "माँ, आप यात्रा के कारण थक गयी होंगी, आराम नहीं किया?" ।
फिर एक क्षण बाद बल्लाल ने पूछा, "कुछ विशेष काप था?" 'हाँ, धा।" दरवाज़े की ओर देखती हुई एचलादेवी बोली।
बल्लाल ने माँ का इंगित समझ लिया और घण्टी बजायी। नौकर हाजिर हआ। उसे आदेश दिया गया, “किवाड़ बन्द कर बाहर ही रहो। हमारे आदेश के बिना किसी को आने न दो।'
नौकर किवाड़ बन्द करके बाहर ही खड़ा रहा। माँ की ओर देखते हुए बल्लाल ने कहा, 'अब कहिए मॉ!''
। 'कुछ नहीं। राजमहल के बारे में मैंने शान्तला से पूछा। उसने कहा, सन्निधान से पूछकर ब्यौरा जानें तो अच्छा। उसके कहने के ढंग से ही उसके मन की पौड़ा स्पाट होती थी। इसलिए मैं जोर न देकर तुमसे जानने के लिए यहाँ आयीं। मेरे तीर्घयात्रा पर जाने के बाद यहाँ राजमहल में कुछ असन्तोषकर घटनाएँ हुई?'' एचलदेवी ने पूछा। ___ “अब तो कुछ नहीं, इससे बीती बात बता सकते हैं। उस अवसर पर
3.56 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो