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इसी तरह रानी शान्तलदेवी राजा बिट्टिदेव के चरण धोकर पोंछने के बाद, शुभ्र वस्त्र बिछाकर उनका स्वागत करेंगी और तिलक देकर मल्लिका हार पहनाएँगी। तदनन्तर दो वृद्ध सुवासिदियो भारती आदी वहाँ मे कहते हुए महा राजमहल के अन्दर के मन्दिर में प्रवेश कर पूजा-प्रणाम के बाद विश्राम करेंगे। शाम के बाद राजमहल के अहाते की सभा में अपनी दो महान विजयों के उपलक्ष्य में नयी विरुदावली से महाराज भूषित होंगे।
अन्तःपुर में दूसरे दिन के कार्यक्रम के लिए तैयारियाँ होने लगीं। सभी का ध्यान इस तैयारी पर लगा था।
इसी समय गालब्बे शान्तलदेवी के पास आयी और इशारे से कुछ बताया। शान्तलदेवी समझ गयी और उससे बोली, "तो बात यों है? तुम पिताजी के पास जाकर कहो कि माचण दण्डनाथ को साथ लेकर आएँ। उन्हें बता दो कि माचण दण्डनाथ किस जगह हैं। जल्दी जाओ। एचियक्का रानी बोपदेवी के पास ही रहें। मैं पट्टमहादेवी और रानी चामलदेवी को साथ लेकर आती हूँ ।"
गालब्बे चली गयी। बाद में शान्तलदेवी पट्टमहादेवी पद्मलदेवी के पास गयी और बोली, "एक जरूरी बात बतानी थी।"
पट्टमहादेवी बोली, "मेरे वस्त्राभरणों का प्रकोष्ठ यहीं पास है, वहीं जाएँगी " दोनों उस प्रकोष्ठ में चली गयीं ।
"सन्निधान बहुत आनन्दित हो लौटे हैं। वे स्वयं रानियों के साथ उद्यान के केलिंगृह में रहना चाहेंगे। उनकी ऐसी इच्छा होना सहज भी है। एक बार वहाँ की सारी स्थिति को अपनी आँखों देख आना उचित होगा। रानी बोप्पदेवी तो नहीं आ सकेंगी। देख आने के लिए न बुलाने पर रानी चामलदेवी भी अन्यथा समझेंगी। मान जाएँगी तो हम तीनों वहाँ हो आएँगी। मैंने नौकरों को पहले ही भेज दिया है। " शान्तलदेवी ने कहा ।
"मुझे सूझा ही नहीं, शान्तला । वास्तव में उस केलिगृह की ओर किसी का ध्यान ही नहीं रहा। भगवान जाने वह किस स्थिति में है! नौकर गये हैं अच्छा हुआ। चलो चलें।" पद्मलदेवी ने कहा। दोनों ने चामलदेवी को भी साथ लेकर उद्यान में प्रवेश किया।
शान्तलदेवी रुकीं। धीमे स्वर में कहा, "मैं आपको एक अद्भुत बात दिखाऊँगी। आप लोगों को चुपचाप आना होगा। कुछ भी प्रत्यक्ष देखें, आपको गुस्सा नहीं करना होगा।"
"इसके माने ?” पद्मलदेवी ने पूछा ।
"कानों से सुनकर, प्रत्यक्ष देखकर ही समझने की बात हैं। इसका निपटारा कल सन्निधान के आ जाने पर उनकी सहूलियत देखकर करेंगे, आइए।" कहती
926 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो