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देती।"
"तो मतलब यह कि तुमने रानीजी को गर्भपात की दवा नहीं दी, वही दवा दी जो पण्डितजी ने दी थी-यही कहना चाहती हो?"
"हाँ, यह सच हैं।''
मार, उसी क; इधर ले आ के कहने पर गालब्बे जिस धैली को नाची उसको दिखाते हुए शान्तलदेवी ने पूछा, “यह थैली किसकी है?"
"यह मेरी है। यह यहाँ कैसे आयी?"
"वहाँ नहीं आयी; उस केलिगृह में लुढ़की पड़ी थी। अय भी तुमसे पूछती हूँ सच बात कह दो।" शान्तलदेवी ने पूछा।
"सत्य हमेशा सत्य ही रहेगा। कह चुकी हूँ।"
"टीक, पण्डितजी आप इधर आइए।" थैली देते हुए शान्तला ने कहा, इसमें एक पुड़िया हैं, देखकर बताएँ कि वह आपकी दी हुई है या नहीं।"
“हों, यह पुड़िया मैंने ही दी थी, इसे खोला तक नहीं!" चकित होकर पण्डितजी ने पुड़िया हाथ में लेकर देखते हुए उस दाई की ओर देखा।
''गालब्बे, उस दूसरी पुड़िया को इधर ले आ।" गालब्बे ने उस दूसरी पुड़िया को लाकर शान्तलदेवी के हाथ में दिया। उसे पण्डितजी को दिखाते हुए पूछा, "क्या इस पुड़िया को भी आपने इस दाई के हाथ में देकर रानीजी को देने के लिए कहा था।" ___ "नहीं न। इस तरह की पुड़िया मेरे पास से जा ही नहीं सकती। इतनी मोटी गोलियों देने जैसा कुछ नहीं हुआ था न, रानीजी को। परीक्षा की थी, दोनों नाड़ियों की गति सपर्पक थी। केवल कुछ कमजोरी को दूर करने के लिए चूरन दिया था 1 यह तो मैंने नहीं दिया!"
शान्तलदेवी ने पूछा, "बताइए उसमें क्या चीज है?"
पण्डितजी ने पुड़िया खोली। देखा तो गुड़ की टिकियाँ! उन्हें तोड़कर देखा, अन्दर काली-सी कोई चीज दिखी। सूंघकर देखा, मुँह से निकला-“छि:-छिः।"
महाराज बल्लाल ने पूछा, "क्या है वह ?"
"यह मशकारि पाषाण शहर है। वैद्यक न जाननेवाली, अनैतिक व्यवहार करनेवाली व्यभिचारिणियाँ अनैतिक गभं को गिराने के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं। शुरू-शुरू में ही यह कारगर हो सकता है। परन्तु यह पाचनशक्ति पर बहुत बुरा असर करता है।" भास्कर पण्डित ने बताया।
"ठोक, अब बताओ, तुमने किस मतलब से इसे लाकर रानीजी को दिया?"
"यह मेरा दिया हुआ नहीं हैं। मुझ पर दोष लगाने के ख्याल से की गयी युक्ति है।' कहकर दाई ने विरोध किया।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 335