________________
आदमी वहाँ जाया। आनन्दनी और इस आदमी के बीच गाढ़ी मित्रता है। यह मेरे जाल में फंस गया। और इस तरह सारा रहस्य मिल गया। सन्निधान और बिट्टिदेवरस जी के प्राण बच गये। उस आदमी ने जो कहा वह झूठ है। दोनों ढाक के पत्तों में पाषाण था, प्रसाद नहीं। वैद्यजी ने उसकी परीक्षा भी की है। उसने मुझे मार डालने का भी प्रयत्न किया। उसे कमर में बैंधी खुखरी की ओर हाथ बढ़ाते मैंने देख लिया तो मैं उछल पड़ी। खुखरी छाती के बदले कोख में लगी। मैं मरी नहीं, बच गयी। जीती रहने की मेरी इच्छा कभी की लुप्त हो गयी है। खुद मृत्यु का बुला लेने वाली बुजदित मैं नहीं हूँ। जी गयी, अच्छा हुआ। यह कम्बख्त खुखरी मेरो कोख में न लगकर जाँघ में लग जाती तो वैद्यजी भी नहीं समझ पाते कि मैं स्त्री हूँ। उन्हें सारा वृत्तान्त बताकर मैंने उनसे प्रार्थना की कि यह बात किसी से प्रकट न करें कि मैं स्त्री हूँ। महाराज की प्राणरक्षा की, इसलिए उनमें मेरे प्रति एक आत्मीयता उत्पन्न हो गयी थी।" ___"सो तो ठीक हैं। मगर तुम्हारी ध्वनि तो कुछ और की-सी लगती है न?" शान्तलदेवी ने पूछा।
" मग बजाएँ " करती रई सिर पर जोर दाढ़ी एवं भौंह पर चिपकाचे बाल सब निकाल फेंके।
उसकं ध्वनि-विन्यास पर सब चकित थे।
"क्यों मायण, मना करते थे, लेकिन तुम खुद जाकर चट्टला को पकड़ लाये ? उसे सजीव लाये न? क्यों, उस पर तुम्हें गुस्सा नहीं आया" शान्तला ने पूछा ।
"हम नालायक हों तो लायक़ बातें कैसे मालूम पड़ें! ग़लती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।'' कहकर भायण न सिर झुकाकर प्रणाम किया।
"देखो तो, यह रावत मायण जो तुम्हारी खोज में गया था, कितना होशियार है! साध ले आया पर पता नहीं लगा सका। मायण, यह तुम्हारी ग़लती नहीं। आगे से ऐसी मनमानी बातें मत किया करो।' शान्तलदेवी ने कहा ।
"मायण का क्या क्रिस्सा है?" बिट्टिदेव ने पछा।
“उसे फुरसत से बताऊँगी। बहुत समय से आप सब बेटे हैं। यह एक ख़ास सभा हुई। सभी बुजुर्ग हम सबकी बातें मौन होकर सुनते रहे। सन्निधान अब आज्ञा दें तो इस सभा को समाप्त कर सकते हैं।" शान्तलदेवी ने कहा। ___ मन्त्रिगण चाहें तो अभी फैसला सुना सकते हैं, नहीं तो कल ही सही।'' बल्लाल ने कहा।
मन्त्रिगण की तरफ़ से प्रधान गंगराज ने कहा, "अभी फैसला सुना सकते हैं। आचण को सूली पर चढ़ा दिया जाय। और इन दोनों औरतों को छह-छह सान्न की कड़ी सजा दी जाय। धर्म-विरुद्ध, भ्रूणहत्या करनेवालों को आइन्दा इससे
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 345