________________
होने के कारण बता देने से कोई ग़लती नहीं, यह हमारी भावना रही। हम इस अनैतिक सम्बन्ध के लिए क्षमा माँगते हैं, चाहें तो हम पति-पत्नी बनकर रहने के लिए तैयार भी हैं।"
यह सुनकर बल्लाल ने कहा, "तुम लोगों का अनैतिक सम्बन्ध प्रासंगिक हैं, उसे एक बार छोड़ दें, पर सबसे बढ़कर दोष तो यह है कि गर्भवती रानी को गर्भपात की दवा देने का षड्यन्त्र तुम लोगों ने किया। यह काम तुम लोगों को भ्रूणहत्या और राजद्रोह के कारण महापराधी ठहराता है। एक अपराध की स्वीकृति की आड़ में दूसरे महापराध से छूट नहीं सकते हो।"
" वह सब मनगढन्त है। हमारे अनैतिक सम्बन्ध का कारण ही दूसरा हैं । कहीं किसी में असूया उत्पन्न हुई, उससे हमें तकलीफ़ में डालने के लिए यह सव किस्सा गढ़ लिया गया है। इसके साथ हमारा कोई सम्बन्ध नहीं ।" इसी आशय का प्रतिपादन उन दोनों ने किया।
फिर बैद्यजी से प्रश्न किया गया। उन्होंने कहा, "राजमहल से बुलावा आया । गर्भवती गनीजी अस्वस्थ हैं, तो अकेले आना उचित न समझकर एक निपुण दाई को भी साथ लेने आया और परीक्षण का कार्य किया। मैंने कहा कि मैं स्वयं दवा तैयार करके लाऊँगा । आदेश हुआ कि दाई के जरिये भेज देना पर्याप्त है। तो मैंने दाई के हाथ चूरन की पुड़िया भेज दी। फिर मुझे बुलावा राजमहल से नहीं मिला। समाचार मिला कि रानीजी कुशल हैं, अतः मैं चुप रह गया। इससे अधिक मैं कुछ नहीं जानता ।"
तब शान्तलदेवी ने पूछा, "आप और दाई दोनों राजमहल से एक साथ निकले। तब दाई आपके साथ आपके यहाँ गयी ?"
वैद्य ने चकित होकर शान्तलदेवी की ओर देखा और कहा, "नहीं गयी। "चूरन तैयार कर रखिए, मैं इतने में आ जाऊँगी। पटवारी चन्दिमय्या की बहू के प्रसव के दिन निकट हैं, एक बार देख आऊँ कहकर वह चली गयी और क्रुद्ध समय के बाद ही हमारे यहाँ आयी । परन्तु यह बात यहाँ तक पहुँची हैं, यह आश्चर्य है !"
"यही नहीं इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात और निकलेगी। हमारे कहलवाने से पहले सत्य बात ज्यों-की-त्यों कह दें तो अच्छा! " शान्तलदेवी ने दाई से प्रश्न किया।
उसने कहा, "पण्डितजी का कहना ठीक है। मैं पटवारी के घर जाकर वहाँ से पण्डितजी के घर गयी। इतने में चूरन तैयार कर पुड़िया मेरे हाथ में उन्होंने दी और दवा लेने का विधान समझाया और कहा, तुम स्वयं जाकर उक्त प्रकार से दवा खिलाओ। मैंने उसे राजमहल में दिया। रानीजी ने आहार ले लिया था ।
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 339