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यह दवा दी उन सबका गर्भपात हुआ है। कुछ दिनों से वह मुझसे यह कह रहा था कि रानीजो को यह दवा देकर गर्भपात करा देना चाहिए। पण्डितजी ने जन मुझे बुलाया तब मैंने सोचा कि इसके लिए मुझे बहुत अच्छा मौका मिला। गर्भ के अधिक समय बीत जाने के कारण मैंने दवा की मात्रा बढ़ाकर ला दी थी। उससे पूछा, 'ऐसा अन्याय क्यों करना चाहते हो?' उसने कहा, 'इस सबसे तम्हें क्या मतलब जो कहता हूँ सो करो; इससे अपना भला होगा। मैंने पूछा भी कि अगर कुछ उल्टा-सीधा परिणाम हो तो ? यह बोला, 'उससे तुम्हारा क्या बिगड़ता है। पण्डितजी ने जो दिया उसे मैंने ला दिया, कह देना।' जब यह खबर मिली कि गर्भ गिरा ही नहीं तो हमें शंका होने लगी कि दवा की मात्रा शायद कम रह गयी। इसके लिए कुल और उपाय करना चाहिए-यह बात सोच ही रहे थे कि इतने में यह साग रहस्य खल गया।' सारी बातें स्पष्ट रूप से एक ही दम में कह डाली उस दाई ने। वास्तव में वह वहाँ से जितनी जल्दी हो सके भाग जाना चाहती थी।
यह सुनने के बाद बाचम से पूछा गया। ''सब लोग मुझे फँसाने के लिए दोष मुझ पर ही लगा रहे हैं। यह सच है कि मैं औरतों के साथ मिलनसारी से बरतता हूँ। वही खुद मेरे पास आती है तो मैं मना क्योंकर करूँ! मैं भी जीवन से निराश हो गया हूँ, घृणा हो गयी है। जी भी छोड़ा-सा सुख मिल जाय उतना ही सही-यही समझकर मैं इसके साथ रहने लगा। इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं जानता। जहर खिलाकर मार डालना या गर्भपात कराना तो वैद्य और दाइयों के खास काम हैं। धन के लालच में पड़कर उन्होंने यह सब किया होगा। इसका सूत्रधार कोई और होगा। इस सम्बन्ध में सच्ची बात वैधी और इस दाई के ही मुंह से निकलवाइए। मैं कुछ नहीं जानता।"-यों बाचम ने शान्त रीति से अपनी दलील पेश की।
मारसिंगय्या तब तक बैठे सब बातें शान्त होकर सुनते रहे। वे उठ खड़े हुए और बोले. “मैं सन्निधान के समक्ष एक-दो बातें निवेदन करना चाहता हूँ। यह उचित अवसर भी हैं। आज्ञा हो तो निवेदन करूँ"
"क्या बात आज के विषय से सम्बन्धित है?" बल्लाल ने पूछा।
''मैं वह तो नहीं कह सकता कि इस विषय से सीधा सम्बन्ध रखती है। परन्तु इस बात के पता लगाने में कुछ नवी रोशनी मिल सकती है तथा यह व्यक्ति कौन है और हम इसकी बातों पर कितना विश्वास रख सकते हैं इन बातों को समझने में सहायक भी हो सकती है। बाद में इस समय जो न्याय-विचार हो रहा है उससे सम्बन्धित बातें भी प्रकट हो सकती हैं। मारसिंगय्या ने कहा।
“इसकी जड़ कहाँ है- यह समझना है। इसके लिए सभी बातों की आवश्यकता है। काहिए।" बल्लाल ने कहा।
पट्टपहादेवी शान्तला : भाग दो :: 337 .