Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 2
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 334
________________ "जो आज्ञा।" कहकर मारसिंगय्या ने झुककर प्रणाम किया और कहने लगे,. "अब तक इस व्यक्ति को बाधा नाकर सा विार को रा] , इस.ए इसके बार में कुछ अधिक बातें मालूम नहीं हो रही हैं। बहुत दिनों तक मैं भी सचमुच यही सपझ रहा घा कि यह बेलुगोल से काम की खोज में आया हुआ वाचम है। हमारी अम्माजी ने कहा कि इसका चालचलन सन्तोषजनक नहीं, इसलिए में किसी को बताये दिना इस व्यक्ति के बारे में अधिक बातें जानने के प्रयत्न में लग गया। इस सन्दर्भ में एक बात प्रकट हुई। यह आदमी हमारे बड़े महादण्डनायक मरियाने के दूर का कोई रिश्तेदार है। अगर उनका रिश्तेदार है तो कुछ गण्यमान्य व्यक्ति होना चाहिए? फिर नाम बदलकर वहाँ नौकरी करने भला क्चों चला आया :-इस बात का रहस्य मालूम नहीं पड़ा। अकारण कोई नकली नाम रखकर जीवन व्यतीत नहीं करता। कुछ रहस्यमय विषयों का मूल यही होगा-या सोचकर इसके बारे में सभी बातों की जानकारी प्राप्त की। भाग्यवश दण्डनायक जो भी यहाँ उपस्थित हैं। इससे मेरी जानकारी के विषय में सत्यासत्व की परीक्षा भी हो सकती हैं। इसका असली नाम आचण हैं।' "क्या यह वहीं आचण है?" अपने आश्चर्य को रोक न सकने के कारण महादपढ़नायक जी जहाँ बैठे थे वहाँ से उठकर उसकी ओर आने लगे। "तो मलाच हुआ कि हेग्गड़ेजी के कथन में कुछ खास बात जरूर हैं। इस आचण के विषय में महादण्डनाचक जी को भी काफ़ी बातें मालूम होनी चाहिए। बता सकते हैं कि वे बातें क्या हैं?" बल्लाल ने पूछा। __महादण्डनायक मरियाने ने धीरे-से झुककर प्रणाम किया और कहा, "सन्निधान का कहना सही हैं। यह अगर आचण ही है तो इन घटनाओं के होने के लिए कारण भी है। ऐसा मुझे लग रहा है। पहले निश्चय कर लूँ कि यह आचण ही है या नहीं। बाद में छिपाव-दुराव के बिना, जितना इसके बारे में मैं जानता हूँ, सन्निधान के समक्ष निवेदन करूँगा।" कहते हुए परियाने दण्डनायक उसके पास गये। ''यह तो आधण ही है। कोई तुरत न पहचाने इसके लिए ये लम्बी दाढ़ी बढ़ा ली है। यह यहाँ कब काम पर लगा?" मरियाने ने पूछा। "शायद दण्डनायक जी के सिन्दगैरे जाने के एक पखवारे के बाद।" प्रधान गंगराज ने कहा। “आप भी इसे न पहचान सके, प्रधानजी?" मरियाने ने पूछा । ''कभी एक बार देखा था, कैसे याद रह सकेगा?' प्रधान ने कहा । -'मेरे सिन्दगेरे यार बसने के वाद, इसी भरोसे से वह यहाँ आकर बस गया हैं। परन्तु बिट्टिदेवरस जी के विवाह के सन्दर्भ में देखा-सा स्मरण नहीं न।" 336 :: पमहादेवी शान्तला : भाग दो

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