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हूँ। दण्डनायक जी ने जो सब बताया उसके साथ मेरा कोई सम्बन्ध ही नहीं। मैं वाचम हूँ। बेलगोल का हूँ। चाहें तो बेलगोल से किसी को बुलवा लीजिए। हेगड़े की बेटी के गुरु वहाँ है । माज बा तो उन्ही को बुलाकर व्याप्त कर हो । उन्होंने पोयसल राजाओं की उदारता आदि गुणों की बहुत प्रशंसा की हैं। इससे प्रभावित होकर मैं काम खोजता हुआ इधर आया था। उन्होंने अपने बलिपुर के जीवन, हेग्गड़ेजी की बेटी को पढ़ाना, चालुक्य पिरियरसी का आकर वहाँ ठहरना, धारानगरी के गुप्तचरों का पता लगाना, हेग्गड़े परिवार के प्रति अपनी प्रशंसा आदि सभी बातों का परिचय दिया है।" बिलकुल शान्त भाव से कहा उस आदमी ने।
इतने में एक नौकर ने आकर झुककर प्रणाम किया। "क्या हैं?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"रावत मायण किसी को साथ ले आये हैं। कहते हैं कि अभी-अभी आये हैं। यह भी कह रहे हैं कि आते ही सन्निधान के दर्शन करने का आदेश था। नौकर ने कहा।
बिट्टिदेव ने महाराज की ओर देखा। महाराज ने कहा, "वुलवा लो।"
नौकर चला गया। तब बल्लाल बोले, “बड़ी अजीब दुनिया है। कैसे-कैसे लोग रहते हैं। देखकर आश्चर्य होता है।"
बात अप्रासंगिक लगी। एक बिट्टिदेव को छोड़कर बाकी सबने महाराज की ओर. फिर दरवाजे की और देखा । शान्तला को मायण का नाम सुनते ही कुछ आश्चर्य-सा हुआ था। वानी रानियों को भी आश्चर्य होने लगा। वह अपने खास काम से गया था, महीनों बाद आया है। शीघ्र ही मायण एक अन्य को साथ लेकर 'भीतर आया और झुककर प्रणाम किया।
आसन दिखाकर उनसे बैटने को कहा गया। दोनों बैठ गये।
महाराज ने अपराधी की ओर देखकर कहा, "कहो, सच के बिना तुमको छूट नहीं मिलेगी। बेलगोल से उन लोगों को भी बुलवाएँगे। वे तो अभी-अभी हाल में वहाँ गये हैं। तुमसे भी पहले वहाँ जो गये है, उन्हें भी बुलवाएंगे। वहाँ के हेग्गड़े को भी बुलवाएंगे। उन सबके आने तक तुम छूट नहीं सकोगे। सच-सच कह दो, तो उन सबको बुलवाने का श्रम हमें भी न होगा, समय भी बचेगा।"
राक्त मावण के साथ जो व्यक्ति आया था, उसने अपराधी की ओर देखा। "यह यहाँ क्यों आया? सन्निधान ने इसे कहाँ पकड़ा? पकड़ा अच्छा किया 1 यह वही है जो इस दिन लापता हो गया था।'
बिदिव अपने आसन से तुरन्त उठ खड़े हो गये। "न सन्निधान को और न ही बिट्टिदेवरस जी को इस बात का पता लग
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 341