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हैं इसलिए धूमधाम से विजयोत्सव की व्यवस्था हो। वह भी ज्ञात हुआ कि एक सप्ताह के अन्दर ही विजयी महाराज और राजा बिट्टिदेव जयमाला पहने नगर में प्रवेश करेंगे।
दोरस जानन्द के भागने लगा। सर्वत्र आनन्दोत्साह उमड़ रहा था। "अब क्या कहती हैं? गर्भस्थ शिशु घुरा है या अच्छा-इसका निर्णय महाराज की विजय ही करेगी।" बोप्पदेवी ने यह बात सबके सामने नहीं, केवल शान्तला के सामने कही। ___ सन्तोष के अवसर पर व्यंग्य नहीं करना चाहिए। अब सब लोगों को एक होकर एक मन से महाराज का स्वागत करने के सिवाय और कुछ नहीं सोचना चाहिए।" शान्तला ने विवेकयुक्त बात कहीं।
सम्पूर्ण दोरसमुद्र पोय्सल पताकाओं से सज गया । स्थान-स्थान पर मण्डप बन गये। गृहिणियों ने अपने-अपने घरों के सामने लीप-पोतकर चौक परकर सजा दिये थे। जहाँ-तहाँ सारी राजधानी बन्दनबारों से अलंकृत हो उठी थी। अपने महाराज के विजयी होकर नगर-प्रवेश के उत्सव के सन्दर्भ में घर-घर में त्यौहार मनाया जा रहा था। सभी लोग नूतन वस्त्र धारण करके इस उत्सव में भागी होने की तैयारी में थे। राजमहल के भीतर-बाहर सफाई हो रही थी। ___महाराज के विजयी होकर राजधानी पहुँचने के एक दिन पहले, दुपहर को राजमहल में एक सभा का आयोजन किया गया। उसमें प्रधानजी, दोनों मन्त्री, माचण दण्डनाथ, हेग्गड़े मारसिंगय्या, पट्टमहादेवी पद्यला, रानी चामलदेवी, शान्तल देवी उपस्थित हुए। दण्डनाधिका एचियक्का और गालब्बे रानी बोपदेवी के साथ रहीं।
इस सभा में महाराज के आगमन के उपलक्ष्य में आवश्यक रूप से किये जानेवाले कार्यक्रमों की रूपरेखा यों बनी :
प्रधानजी और माचण दण्डनाथ दोनों राजधानी के महाद्वार से एक कोस की दूरी पर नये वस्त्र उपरना आदि देकर महाराज का स्वागत करेंगे। वहाँ से मंगल वाधघोष के साथ उन्हें लिवा लाएंगे। महाद्वार के समीप शेष मन्त्रिगण, अधिकारी वर्ग, प्रमुख पौरजन, पुरोहित वर्ग आदि उपस्थित रहेंगे और पूर्णकुम्भ के साथ महाराज का स्वागत करेंगे। बिरुदावली के उद्घोष के साथ वेदघोष और राजाशीवाद होगा; इसके बाद हौदे से सुसज्जित हाथी पर महाराज और बिट्टिदेव विराजेंगे, वहीं से यह जुलूस राजधानी के प्रमुख राजमार्गों से होकर राजमहल पहुँचेगा। राजमहल के महाद्वार पर पट्टमहादेवी पादोदक से महाराज के पैर धोएंगी, और रानी चामलदेवी पैर पोंछकर शुभ्रवस्त्र बिछाकर महाराज को लिवा लाएँगी; रानी बोप्पदेवी सन्निधान को तिलक करेंगी; तीन एक-एक मल्लिका पुष्पहार सन्निधान को पहनाएंगी।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 925