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उनको गतिविधियों तथा उनके चाल-चलन पर नज़र रखी।
इधर उधान के कोलगृह के कार्यकलाप चलते ही रहे, बिना किसी रोकथाम के । गालव्ये विस्तार के साथ वाह सारा समाचार शान्तलदेवी को सुना दिया करती थी। गालब्बे ने मलाह भी दी कि इस उद्यान में प्रवेश करना ही मना कर दें तो अच्छा होगा। इसका विचार था कि यहाँ इस उद्यान में ये लोग आपस में मिलते-जुलते रहते हैं और षड्यन्त्र रचते रहते हैं। प्रयेश बन्द करने से यह सब बन्द हो जाएगा।
षड्यन्त्र रचनेवाले यहाँ नहीं तो दूसरी जगह खोज लेंगे। यहाँ इनके मिलते-जुलते रहने पर हमें उन लोगों की गतिविधियों का पता लगता रहेगा। इसके अतिरिक्त अगर हम केलिवन में प्रवेश बन्द कर दें तो इन लोगों को यह सोचने का मौका मिल जाएगा कि इनकी सारी कार्यवाहियों का पता राजपरिवार को लग गया है। उस हालत में ये लोग चौकन्ना हो जाएंगे। फिर कुछ भी मालूम नहीं हो सकेगा। इसलिए अभी जैसा चल रहा है, वैसा ही चलते रहने दें।" शान्तलदेवी ने कहा। अतः वह सब कार्यकलाप ज्यों-का-त्यों चलता रहा।
राजमहत का वातावरण इन बातों के कारण तरह-तरह की परिस्थितियों से अशान्त और कलुषित हो चला था। पटरानी पद्यलदेवी ऊपर से चाहे जैसा भी व्यवहार करें, अन्दर-ही-अन्द! ५.: निर्णय २ शि. से नहान घड़ अपनी मुट्टी में रखेगी।
इधर बाप्पदेवी ने अपने मन में यह निश्चय कर लिया कि विजयी होकर महाराज जन्न लाँटें तब वह उन्हें एक शिशु दे सके। इतनी कृपा भगवान उस पर कर दें, तो फिर देखेगी कि उसका कौन क्या कर सकता है।
अपने-अपने बारे में यही उन लोगों का निर्णय था। पद्मलदेवी यह सोचती रही : अगर शान्तला दोरसमुद्र में रहेगी तो मेरे लिए रुकावट ही बनकर रहेगी, इसलिए उसको यहाँ नहीं रहने देना चाहिए। पर बोपदेवी यह सोचती रही । यदि शान्तला यही रहेंगी तो मैं राजमाता भी बनूँगी, मेरी सम्पूर्ण सुरक्षा वह करेंगी, इसलिए उन्हें यहाँ से जाने न देकर यहीं ठहरा लेना होगा, इसकी व्यवस्था करनी होगी।
चामलदेवी एक तरह से इन सब बातों से अनासक्त थीं। इधर अनावश्यक ही इन बातों में उसका नाम पसीटकर उस पर टोप लगाने की कार्रवाई हो चली थी जिससे परेशान होकर उसने यह निर्णय कर लिया था कि अबकी महाराज के आने पर उनसे अपने पिता के यहाँ जाने की अनुमति ले लेगी। उसे इन झगड़ों के बीच रहना पसन्द ही न था। ___ इस हालत में एक दिन समाचार मिला कि महाराज विजयी होकर लौट रहे
324 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो