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पण्डित को बुलाना का
"दाई के हो हाथ भिजवा दीजिए" शान्तलदेवी ने कहा।
पण्डित और दाई दोनों चले गये ।
पटरानी जी आयीं। उन्होंने पूछा, "पण्डितजी ने क्या कहा? कोई चिन्ता की बात नहीं है नः"
"कुछ घबराने की बात नहीं। पण्डितजी ने नब्ज़ देखकर कहा है। पुड़िया ढाई के हाथ से भिजवाने की बात कह गये हैं ।" शान्ततदेवी ने कहा ।
"दाई को क्यों आना चाहिए था? हमारी कोई दासी ही गयी होती ?" पद्मलदेवी ने कहा ।
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"मैंने ही स्वयं यह बात कही। पण्डितजी ने कहा भी कि किसी दासी को भेज दें और यह भी कहा कि वह खुद भी आ सकते हैं। बात गर्भवती की है, इसलिए मैंने ही कहा- इतने में ही कोई बात हुई तो दाई के ही आने पर सुविधा भी हो जाएगी।" शान्तलदेवी वाली 1
"सो भी ठीक है, चाहे तो दाई यहीं रहे। "
"देखें परिस्थिति ऐसी हो तो दाई को यहीं रख लेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा । पटरानी जी चली गयीं । दाई पुड़िया ले आयी। बोली, "यह चूरन बहुत कड़वा है इसलिए वैद्यजी ने गुड़ के साथ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर दी हैं। एक के बाद एक करके निगलकर थोड़ा-सा पानी पीना है। इसे खाने के आध घण्टे के भीतर आहार ले लेना होगा।"
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"गोलियों को तुरन्त तो नहीं ले सकतीं, क्योंकि अभी-अभी रानीजी ने आहार लिया है। कम-से-कम तीन चार घण्टे के बाद फिर आहार ले सकेंगी। इसलिए बाद में यह औपनि दी जा सकती है न?" शान्तलदेवी ने पूछा ।
जी ने कहा है- तुम खुद देकर आओ।" दाई बोली ।
"क्यों गोलियाँ निगलना कौन नहीं जानता
"नहीं, ऐसा नहीं, कर्तव्य की दृष्टि से यों कहा है। रहने को कहें तो मैं रह जाऊँगी, नहीं तो चली जाऊँगी।” दाई ने कहा।
"रानीजी से पूछ लेंगे, वे जैसा कहें, करेंगे।" कहकर शान्तलदेवी बोपडेबी की ओर मुड़ी।
वोपदेवी ने कहा, "गोलियाँ मेरे सिरहाने रख दें। भूख लगते ही उन्हें निगलकर बाद में कुछ आहार ले लूँगी। उसे प्रतीक्षा करते रहने की क्या आवश्यकता है इतने में ही कहीं से कोई बुलावा इसके लिए आ सकता है, बेचारी वह यह क्यों रहे?"
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वहाँ और भी चार दाइयाँ हैं।" दाई बोली ।
322 :: पट्टमहादेवी शातला भाग दो