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का जन्मोत्सव और बोप्यदेवी का प्रथम गर्भ सीमन्त समारम्भ- दोनों शान्तलदेवी. के नेतृत्व में बिना किसी धूमधाम के बाहरी लोगों की जानकारी के बिना, अन्तःपुर तक सीमित रहकर सम्पन्न हुए।
समय गुजरता गया । शान्तलदेवी के कहने पर भी इन लोगों में विवेक नहीं आया। दामध्बे और बाचमा की चातुरी से इन बहिनों में परस्पर देध की भावना अन्दर ही अन्दर बढ़ने लगी। ये दोनों राजमहल के लोगों के साथ और अन्य नौकर-चाकरों के साथ जिस मिलनसारी और सरसता से मिलते-जुलते थे; इसे देखकर गालब्बे को यह समझना कुछ मुश्किल हो गया कि कौन क्या कर रहे हैं। एक बात उसे स्पष्ट मालूम हो गयी कि किसी-न-किसी बहाने बोप्पदेवी को कोई दवा खिलाकर, गर्भस्त्राव कराने का षड्यन्त्र रचा जा रहा हैं। परन्तु उसे यह मालूम नहीं हो पाया कि आखिर इस षड्यन्त्र की प्रेरक शक्ति कौन हैं।
गालब्बे को जो कुछ मालूम हुआ, वह सब उसने शान्तलदेवी को निवेदन किया। सुनकर शान्तलदेवी स्तब्ध-सी हो गयी। कुछ देर तक वह सोचती रही। और फिर उसने इस गर्भपात के प्रयत्न को विफल करने का निश्चय कर लिया। इसका अब एक ही रास्ता है कि बोप्पदेवी को इस दिशा में सजग कर दिया जाए तथा उसके खानपान पर कड़ी नजर रखी जाए ।
शान्तलदेवी बोप्पदेवी से मिलीं। सारा वृत्तान्त संक्षेप में समझाया और कहा, "हमें सतर्क रहना होगा। बोल बहुत सकते हैं परन्तु कार्य करना हो तो धीरज के साथ काम में लगना पड़ता है। और फिर इस सारे षड्यन्त्र का मूल कहाँ
- इसका पता नहीं लग पाया है।" शान्तलदेवी आगे कुछ और कह रही थीं कि बीच में ही बोप्पदेवी कह उठी, “मेरे गर्भ पर उस पद्मी के सिवाय और किसी की आँख नहीं लगी है। वही इस षड्यन्त्र की प्रेरक शक्ति है। इसमें किसी और को रुचि लेने की आवश्यकता ही क्या है? दीदी, यह सब देखती हूँ तो यही लगता हैं कि ऐसी रानी बनकर इन तकलीफ़ों में पड़ने से तो यही बेहतर होता कि किसी एक के साथ विवाहित होकर माता बनकर सुखी जीवन बिताती ।"
“मुझे यह अच्छी तरह मालूम है कि स्त्री माँ बनकर जिस सुख का अनुभव करती है वह सुख और सन्तोष सर्वश्रेष्ठ होता है। परन्तु एक बात ! सच्चाई क्या है यह निश्चित रूप से मालूम न होने तक पटरानी पर दोषारोपण करना ठीक नहीं । अच्छा, अब एक काम करेंगे। अब यह कहकर कि स्वास्थ्य ठीक नहीं, तुम्हें अपने अन्तःपुर में ही रहना होगा। तुम्हारे खाने-पीने की वस्तुएं मेरे हाथ से या गाल के हाथ से मिलने पर ही तुम्हें स्वीकार करनी होंगी। दूसरा कोई लाए तो
320 पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो