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देता।' बोप्पदेवी ने कहा।
"जो किया, किया, वही काफ़ी है; सब कर चुकने के बाद अब उपदेश देने चली है।" और भी कड़ा होकर कहा पद्मलदेवी ने। ___मैंने कुछ नहीं किया। जो किया वह तुमने ही किया। मेरा गर्भ रहा, इससे तुम्हें ईष्या हो गयी। ईर्ष्या से जलने लगी। इसलिए तुम यो खेल दिखा रही हो-क्या इतना भी नहीं समझती हूँ मैं? मेरे लिए सीमन्त संस्कार विधिवत् न हो इसलिए तुमने अपने जन्मदिनोत्सव को धूमधाम से न मनाने का बहाना कर लिया। वही तो सुनती हूँ।' बोप्पदेवी ने कहा।
पसल जा पाहिलात नहीं, हो 'पी युद्धक्षेत्र में गये हैं तब मुझ बाँझ को जन्मदिन का यह आडम्बर क्यों? यह तुमने जो कहा सो भी मैं समझती हूँ। मैं बाँझ सीमन्त की चिन्ता ही क्यों करूँ?" पचलदेवी बौखला उठी।
"ऐ, बोप्पी, तुमने ऐसा कहा?" कहती हुई चामलदेवी ने पद्मला की तरफ़ मुड़कर पूछा, "किससे कहा इसने?" ___ "बहुत अच्छा! बात सुनकर पीठ ठोंकनेवाली ही यों सवाल करें तो समझना चाहिए कि पैरोंतले जमीन ही खिसक गथी। यों पीट पीछे बात करना मुझे सह्य नहीं। साहस हो तो सामने कहो।' पद्मलदेवी ने कहा। __ "शायद किसी ने यों ही कह दिया होगा।" चामलदेवी बोली।
“यों ही? कानों सुनी बात बतायी है। ऐसा कौन है कि जो कही बातों को स्वीकार कर ले। मैं परेशान हूँ, महाराज आ जाएँ तो बस; यहाँ की सारी रामकहानी सुनाकर कह देना चाहती हूँ कि आपको कुछ सोचना होगा।" पद्मलदेवी ने कहा।
इन बातों को आमूलाग्र जाननेवाली शान्तलदेवी अब तक चुप रही आवीं लेकिन अब उन्हें बोलना पड़ा, "अब पटरानी जी से मेरी एक विनती है। इन बातों से स्पष्ट हो गया कि अभिप्राय भिन्नता और ग़लतफ़हमी हो गयी हैं। मेरे लिए तो बहुत-सी बातें नयी हैं। मुझे लगता है कि ऐसी बातों पर विश्वास करना ही कठिन है। इतना सच है कि अभी-अभी आप लोगों ने जो बातें कहीं, इनको सुनने से निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये बातें किसी जरिये किसी लक्ष्य की साधना करने के उद्देश्य से उठी हैं। ये सब घटी हैं पीठ-पीछे। सम्भव है कि इन बातों को सुनानेवालों ने ही ग़लत सुनायी हों। यह सुनकर यदि संघर्ष हुआ तो यह उन सुनानेवालों की गलती है, आप लोगों की नहीं। पटरानी जी को एक बात हम सबके लिए मान्य होनी चाहिए। महाराज के आने तक हमारा इन बातों पर ध्यान नहीं जाना चाहिए। जय' सारा राष्ट्र युद्ध में लगा है और महाराज स्वयं युद्ध में लगे हैं तब राजमहल में बैभव के साथ वर्धन्ती को मनाना उचित नहीं लगता। पटरानी का यह निर्णय बहुत ही योग्य है। यह निर्णय करके पटरानी जी ने
पट्टमहादेवी शान्तला : पाग दो :: 317