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सही-सलामत लौट आएँ। भगवान बाहुबली फिर कभी उनका हाथ न छोड़ेंगे। उन्होंने वंशोद्धार के लिए एक अंकुर देने का अनुग्रह किया है, वही हाथ अव विजय प्रदान भी करेगा। अर्हन्त के आशीर्वाद से प्राप्त होनेवाली पोसल वंश की सन्तान की और युद्ध में विजय की कामना करते हुए यह मिटाई खाएँ।'
शान्तलदेवी का आग्रह स्वीकार करते हुए सभी प्रसन्नतापूर्वक मिटाई खाने लगीं। वामलदेवी की वातों से खिन्न बोप्पदेवी भी सहज हो गयी। शुरू-शुरू में जो व्यंग्य-भरी बातें होती रहीं वे अब नहीं रहीं। वहुत दिनों बाद सबका यों एक साथ मिलना हुआ था। आज सभी के मन का मैल निकल गया था। शान्तलदेवी ने पूछा, “एक खेल शतरंज का क्यों न हो जाय!"
"हम पाँच लोग हैं न?" बोपदेवी ने कहा। __ "आय चार जने ही खेले। मैं पक्का गोट निकाल दिया करूंगी।" एपियक्का ने कहा।
फिर क्या था, शान्तलदेवी ने घण्टी बजायी। और देखते-देखते ही खेल की तैयारी हो गयी। चारों ने गोट रखे। पहले खेले कौन यह निश्चय होना चाहिए न?
एचियरका ने कहा, "अब लोग एक-एक संख्या बताइए। मैं पासा डालूंगी। आप चारों की कही संख्या में से जिसकी संख्या गिरे वे पहलं खेलें। यदि किसी की भी संख्या नहीं आची तो बड़ी रानी ही खेल शुरू करेंगी।''
प्रत्येक ने एक-एक संख्या बतायी। बाद में पचियक्का ने पासा खेला। पद्मन देवी ने जो संख्या बताची, वहीं आयीं थी। चौथी वार पासा खेलने पर पद्मलदेवी ने कहा, "मैंने जो संख्या कही वह अगर न भी गिरी होती तो भी मुझो को खेल शुरू करना था।" __ "पटसनी को पहले खेलने देने के लिए हम सब तैयार हैं। हैं न?" कहती हुई शान्तलदेवी ने चामलदेवी और बोपदेवी की ओर देखा।
"उन्हें प्रथम स्थान देना हमारा कर्तव्य है और वही सही है।" बोप्पदेवी बोली ।
"ठीक है। खेल शुरू करने के पहले एक-एक बार पासा खेलकर उसे भगवान के लिए छोड़ देंगे। पासा खेलने के पहले हम भगवान के नाम का स्मरण करें। भगवान से यह प्रार्थना करें : पोय्सल वंश में अंकुरित होनेवाली सन्तान लड़की होगी या लड़का-इसे यह पासा ही बताएगा। अगर सम संख्या होगी तो लड़की,
और असम होगी तो लड़का। जिसके जैसे पासे उसकी वैसी इच्छा। ठीक है न पटरानी जी!" शान्तला ने प्रस्ताव रखा।
"ऐसा हंसी-मज्ञान मेरी यह छोटी बहिन बरदाश्त नहीं करेगी। अगर वह मान ले तो हमें कोई एतराज नहीं।" पद्मलदेवी ने कहा।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 503