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का उद्धार करनेवाली, वहीं सबसे मुख्य हैं, उसके कहे अनुसार राजमहल के कार्य-कलाप सम्पन्न हों, यही नः दुर्बलता दिखाएँ तो लोग सवार ही हो जाएंगे। अगर मैं अपने स्थान और पद को और मजबूत न बना रखू तो हमारे दास-दासियाँ भी हमें धूल बराबर समझने लगेंगे। मैं ऐसी स्थिति नहीं आने दूंगी।"
इधर दामध्ये प्रधानजी के पीछे-पीछे चली। उसने देखा कि वे सीधे अपने-अपने कार्यालय में चले गये हैं। लौटकर उसने अपनी मालकिन को यह इता दिया ! पालवी से गान ग्राम अंक कि वे उसकी बहिनों से विचार करने गये होंगे। वे ऐसे मूर्ख थोड़े ही हैं, ऐसा क्यों करने लगे अच्छा, पहले से महाराज मुझे ही चाहते थे न: ये दोनों रानियाँ बनीं मेरी पूँछ बनकर । आज चामला मेरे साथ है सही, कल अगर बोप्पि की लड़की हो और मुझसे पहले यह लड़के की माँ बने, तब इसका भी रंगढंग बदल जाएगा। किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसलिए अब मेरे लिए यहीं एक कर्तव्य है कि मैं अपने स्थान को मजबूत बना लें। किसी पर विश्वास नहीं करना होगा। यों सोचती हुई वह इस निर्णच पर पहुंची : "ये मुझसे दूर होती जाएंगी, अन्त में मैं अकेली ही रह जाऊँगी। सम्भव है कि ये दोनों मेरी शत्रु भी बन जाएँ।''
आदेश की प्रतीक्षा करती हुई दामब्बा वहीं खड़ी थी। पद्यलदेवी ने उसे इशारे से पास बुलाया और कहा, ''अन्तःपुर कहाँ क्या होता है इस सबका पता लगाकर मुझे उन बातों की ख़बर देती रहना। तुम मेरे रनिवास से सीधा सम्बन्ध रखनेवाली दासी हो, इसलिए तुम विशेष रूप से आया-जाया करोगी, तुम पर कोई शंका नहीं करेगा। हमारे राजमहल के नौकरों में कोई ऐसा आदमी, जिसे तुम अच्छी तरह जानती हो और जिस पर पूर्ण विश्वास हो तो उसे बुला लाओ।" पद्यलदेवी ने कहा।
''है एक आदमी।"
''मैं उससे कहूँगी कि क्या करना होगा। बाद में तुम उससे मिल लेना और सारी स्थिति समझकर फिर मुझे बता देना।" पद्मलदेवी ने दामब्बे के कान में कहा।
“पिरिचरसी जी से मुझे पहले ही कहना चाहिए था। मुझे यह शंका रही कि यदि मुद्दा पर अविश्वास हुआ तो...इसलिए मैं चुप रही आयी। मैंने परसों ही कुछ सुना था। दामव्ध ने मौका पाकर अपनी नीचता आरिहर दिखा ही दी।
'कहो, क्या बात है" 'पिरियरसी जी की वहीं वर्धन्ती की बात । छोटी रानी..." ''कौन बोप्पिः" 'हाँ, ये ही छोटी रानी से कह रही धीं।''
914 :: पष्टपहादेवी शान्तला : भाग दो