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सम्बन्धित सभी व्यक्ति यही सोच रहे थे कि बात फिर उठेगी कि नहीं। किन्तु इस वामाचारी के विषय में लड़कियाँ कुछ जानती ही नहीं यह स्पष्ट मालूम हो जाने पर, तथा शान्तला और बिट्टिदेव के प्रयत्नों के कारण, सो भी कई विचित्र संयोगों के जरिये, यह बात फिर से चेतना पा गयी थीं। जिन परिस्थितियों के कारण बात को स्थगित होना पड़ा था वे सब बातें अब छंटती हुई नज़र आ रही थीं। इससे चर्चा के फिर से छिड़ने में सहूलियत हो गयी थी।
मारसिंगय्या ने दण्डनायक से बातचीत करने के बाद फिर प्रधान गंगराज से भी विचार-विमर्श किया था। इसके बाद हेग्गड़ती माचिकब्बे द्वारा एचलदेवी को ठीक-ठीक सलाह दी गयी। दण्डनायिका ने आहिरी साँस लेते हुए इच्छा प्रकट की थी, उसे पूरा करने के लिए एक ही मार्ग था। वह यह कि बल्लाल एक साथ तीनों लड़कियों से विवाह कर लें। तीनों को महाराज के हाथ सौंपने के विरोधी नहीं थे दण्डनायक मरियाने । गंगराज ने भी कहा, “ऐसा होने में कोई दोष नहीं, इच्छा होने पर महाराज परानी के साथ और रानियों को भी रख सकते हैं। यह धर्म विरुद्ध भी नहीं। और किसी से विवाह कर सौतिया डाह के लिए मौका देने से बेहतर यह होगा कि उन बहिनों से ही विवाह कर लें लेकिन यह तभी सम्भव है जब महाराज, महापातृश्री तथा विवाह करनेवाली लड़कियों स्वीकार कर लें।"
एचलदेवी ने सारी जिम्मेदारी बल्लाल पर छोड़ दी। बल्लाल का प्रेम पद्मला पर था। दूसरों पर अपनी प्रेयसी की बहिनें होने के नाते एक सहज वात्सल्य मात्र था। ऐसी स्थिति पैदा हो जाने की इसे कल्पना तक नहीं थी। उसे मालूप था कि महाराज की कई रानियों हो सकती हैं परन्तु बहिनों से विवाह करके अधिक समय पद्मला के साथ व्यतीत करने पर दूसरी परेशान हों तो बहिनों में आपस में इप्या के उत्पन्न होने का वह कारण बन सकती है। इसलिए इस बात के निर्णय का दायित्व उन्हीं पर छोड़ देने की सूचना बल्लाल ने दी। इसका तात्पर्य यह हुआ कि तीनों के साथ विवाह करने के विषय में उत्साह न होने पर भी, होना पड़े तो हज नहीं-इस विचार का बल्लाल ने संकेत किया।
आगे की जिम्मेदारी पद्मला पर आ पड़ी। वह सोचने लगी : ''मैं पट्टरानी बनें और बहिनें रानियाँ बनें और सौत बनें-इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? स्वीकार करने के लिए कहें भी तो कैसे : उनकी भी अपनी-अपनी आशाएँ-आकांक्षाएँ होंगी ही, ऐसी हालत में उन पर जोर डालें भी तो कैसे?" बड़ी दुविधा में पड़कर वह शान्तला के पास गयो। इस समस्या और उसके समाधान से चामला या बोप्पि दोनों बेखबर थीं। इसलिए उन्हें समझा-बुझाकर उनकी राय जानने का जिम्मा उसने शान्तला पर डाल दिया। परन्तु उन लोगों की स्वीकृति मिल जाने पर स्वयं पद्मला को कोई एतराज नहीं होगा-इस बात की जानकारी शान्तला को जब तक
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 261