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भी आप लोग अन्यथा न लेंगे। चलते हुए रास्ते में सोचा भी कि कहीं आमन्त्रण के विना जाने के कारण दक्ष के यहाँ सती की जो दशा हुई वही मेरी भी न हो जाय। फिर भी मेरे अन्तरंग का वह प्रेम गझे यहाँ तक खींच लाया। मेरे उस प्रेम के बदले में वही प्रेम मिला। अब ग़लतफ़हमी में पड़े चक्रयती बाद में वस्तुस्थिति से परिचित हो जाने पर बदल भी जाएँ यह भी असम्भव नहीं। मेरी विनती है कि आप लोगों का मन सदा खुला रहे। कटकर दूर होने को मत सोचें। यहाँ न समझा सकनेवाली मैं यहाँ आप लोगों को समझाने की धृष्टता कर रही हूँ-ऐसा मत समझें। मुझे विश्वास है कि आप लोग अन्यथा नहीं समझेंगे। मेरी परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि रहना चाहूँ तो भी रह नहीं सकती हूँ। देखें, मेरी इच्छा के अनुसार सब ठीक हो जाए तो कल ही मैं यहाँ से प्रस्थान कर दूंगी। गालब्बे और लेंका ने यहीं रहने की इच्छा प्रकट की है। मुझं भी स्वीकार है। अगर यह चट्टलदेवी मेरे साथ चलना स्वीकार करें तो इसे साथ लेती जाऊँगी।"
चट्टला को यह बात शिरोधार्य नहीं हुई। यह बोली, “पहली साँस पोय्सल राज्य में ली थी, अन्तिम साँस भी यहीं लेना चाहूँगी।"
श्रीदेवी अचानक आयीं, कुछ लोगों को खुश करके चली गयीं। जाने के पहले एक बार नवविवाहिता दम्पती को उन्होंने आशीवाद दिया और छोटे चलिकेनायक को बुलवाकर कहा, “खी नायक, तुम्हें और तुम्हारे परिवार को इन नूतन दम्पतियों की सेवा में अपना जीवन वरोहर रखना होगा। तुम्हारा पंश सदा ही स्वामीनिष्ठ रहा है और स्वामी द्रोहियों का नाशक विरुद धारण करता आया है। अपने वंश की इस कीर्ति को बनाये रखना तुम्हारा कर्तव्य है। रेविमय्या, तुम्हारी और मेरी अभिलाषा पूरी हुई। इस दृष्टि से तुम और मैं दोनों ही बराबर हैं न? एक साधारण नौकर होते हुए तुम्हें जो स्वातन्त्र्य प्राप्त है वह मुझे नहीं। मेरे लिए यही तो एक तृप्ति और सन्तोष है कि अवसर पर यहाँ आ सकी, भले ही इसकी जानकारी मैंने किसी को नहीं दी।
श्रीदेवी एक और बात से भी तृप्त थीं कि रेक्मिय्या और बुतुगा उन्हें स्मरण कर रहे थे और आमन्त्रित करने का प्रस्ताब भी करते रहे। इस सम्बन्ध में अपने पिता के साथ हुई सारी चचा से शान्तला ने श्रीदेवी को अवगत करा दिया था।
विवाह-महोत्सव समाप्त होते ही डाकरस दण्डनाथ सपरिवार यादवपुरी के लिए रवाना हो गये।
श्रीदेवी के आदेश के अनुसार छोटे चलिकेनायक को राजमहल के रक्षकदल की देखभाल के काम के लिए वहीं रोक लिया गया। बल्लाल के लिए जैसे सिंगिमय्या आप्त रक्षक था वैसे ही बिट्टिदेव के लिए छोटे चलिकेनायक रक्षक बन गया।
पट्टमहादेवी शान्तला : पाग दो :: 291