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कर दिया और एक यह कि इस मांगलिक अवसर पर उपस्थित रहकर दोनों को अपनी आँखों से देख सन्तुष्ट होने का अवसर मुझे दिया। मैं दो दिन यहीं रहूँगी । विधिवत् कार्यक्रम सम्पन्न होवें अचानक इस अवसर पर मेरा आना आप लोगों को आश्चर्यजनक लगा होगा। सारी बात बाद में बताऊँगी । परन्तु कोई इस बात को न भूले कि मैं श्रीदेवी हूँ ।" कहती हुई ये वहीं विवाह वेदी के पास जाकर बैठ गयीं ।
रेवमय्या और बुलुगा को लगा कि अब विवाह वेदी एक नयी प्रभा से जगमगा रही है। श्रीदेवी के बारे में कुछ न जाननेवाले आपस में बातचीत करने लगे कि यह कौन है। जो जानते थे वे मौन रहे आये। 'श्रीदेवी' नाम सुन, कुछ सोच-विचारकर विवाहोत्सव की उस चहल-पहल में भी छोटे चलिकेनायक उनके पास आये। उन्होंने हाथ जोड़कर सविनय अपना परिचय दिया, “मैं नायक का बेटा छोटे चलिकेनायक हूँ ।"
"नायकजी आये हैं?" श्रीदेवी ने पूछा।
"वे तो प्रभु के साथ ही चल बसे ।"
"क्या हुआ था?"
"उम्र भी काफ़ी थी। आदर्श जीवन व्यतीत करते हुए हमें सन्मार्ग दिखाकर चल बसे इसलिए दुख की बात नहीं "
"वह जिस तरह प्रभु के विश्वासपात्र बनकर रहें, तुम्हें भी उसी तरह इस नवविवाहित दम्पती के साथ रहना चाहिए, नायक ।" श्रीदेवी ने कहा ।
"जैसी आपकी आज्ञा ।"
"अकेले ही आये हो?"
"नहीं, पत्नी और बच्चे सब आये हैं।"
"याद में देखूँगी ।"
नायक जैसा आया था वैसा ही लौट गया। वह बेचारा अपने उतावलेपन को रोक नहीं सका था ।
शालिवाहन शक वर्ष 1027 श्रीतारण संवत्सर, उत्तरायण वसंत ऋतु, वैशाख शुक्ल पंचमी, मृगशिरा नक्षत्र युक्त शुभ कर्नाटक लग्न में, लाभ स्थान में गुरु चन्द्र, भाग्यस्थान में उच्च शुक्र, कर्म स्थान में उच्च रवि के रहते विधिवत् यह विवाह सम्पन्न हुआ।
श्रीदेवी आते ही राजमहल के बाहर के साधारण निवास में ठहर गयी थीं, अब उन्हें राजमहल में बुलवा लिया गया। उनका सारा रक्षक दल वहीं ठहर गया। विवाह के दिन सब अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहे, इसलिए श्रीदेवी को विश्राम करने का मौका मिल गया। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि उनकी
278 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो