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समस्या उठ खड़ी हुई है, उसका समाधान करने में आपकी उपस्थिति से मदद मिल. जाएगी।" कहते हुए समस्या उनके सामने प्रस्तुत की।
मारसिंगय्या ने बताया, "वास्तव में मैं भी उसी विषय पर बातचीत करने के इरादे से आया हूँ। अभी थोड़ी देर पहले हमारे यहाँ भी इसी बात पर चर्चा चली।" नौकर बुतुगा से जो सूचना मिली, तथा बाद में भी इस सम्बन्ध में जो भी बातचीत चली थी, हेग्गड़ेली ने वह सब कह सुनायी और अन्त में निवेदन किया, "यद्यपि मेरा भी मन्तव्य इस चर्चा में निहित है लेकिन ऐसा ही करना यह मेरा मन्तव्य नहीं; इस पर विस्तार से विचार किया जाना चाहिए। अन्तिम निर्णय राजघराना ही करेगा। व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए दोनों बराबर हैं।' इतना कहकर मारसिंगय्या चुप हो गये।
बिट्रिदेव ने कहा, "सोच-समझकर ही विचार करना होगा। सन्निधान के समक्ष पेश कर विचार-विमर्श करने के बाद ही निर्णय करना उचित है, यही ठीक होगा न, मौं?"
महामातृश्री एचलदेवी ने कहा, "हम स्त्रियाँ हैं। ऐसे मांगलिक अवसरों पर हम ममता, आत्मीयता देखना चाहती हैं। राष्ट्रहित सर्वोपरि है इससे मैं सहमत हूँ परन्तु इस समस्या के दो पहलू हैं। अब तक तुमने जो बताया एक वह है और हेग्गड़ेजी जो बता रहे हैं वह दूसरा पहलू हैं। प्रधानजी के साथ तुम बेलापुरी जाओ
और वहाँ निर्णय करो। मैं जानती हूँ कि तुम्हारे प्रभु सदा ही स्नेहपूर्ण व्यवहार करनेवाले हैं। यह उनका स्वभाव है। तब की स्थिति कुछ और थी अब उसमें कुछ परिवर्तन आया होगा। मैं यह कहने में असमर्थ हूँ कि वह ठीक है।''
बिट्टिदेव उठ खड़ा हुआ। मारसिंगय्या भी उठ खड़े हुए और विनीत होकर बोले, "आज्ञा हो तो मैं भी साथ हो आऊँ?"
"न, हम ही दोनों हो आएँगे।" विट्टिदेव ने कहा। मारसिंगच्या दोनों को प्रणाम कर वहाँ से चले गये।
यिट्टिदेव गंगराज को साथ लेकर वेलापुरी पहुँचे और बल्लाल के साथ विचार-विमर्श कर लौट आये। बल्लाल को लगा कि आमन्त्रण भेजना अपनी दुबेलता का प्रतीक माना जाएगा, इसलिए उन्होंने अपना निर्णय सुनाया, "अपने पट्टाभिषेक एवं विवाह के अवसरों पर आमन्त्रण नहीं भेजा गया है। इसलिए अब आमन्त्रण न ही भेजना उचित होगा।"
इस निर्णय के साथ यह बात समाप्त हो गयी।
उपनयन संस्कार के लिए पहले मुहूर्त टहराया गया था। एक सप्ताह पहले ही महागज बल्लाल अपनी रानियों सहित दोरतमुद्र पधार गये।
आमन्त्रित करीब-करीब सभी आये थे। छोटे चलिकेनायक अनेक तरह के
276 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो