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छुट्टी पा ली। अब मुझे नहीं सूझ रहा है कि क्या करूँ? उन्हें अपनी बहुएँ बनानी होंगी, नहीं तो उन्हें मन्दिर की सेवा में समर्पित करना होगा। यह कैसी सन्दिग्ध स्थिति है!" कहकर वह मौन हो गयीं।
"महाराज की राय जानना अच्छा होगा न?"
"हो सकता है कि अब मन बदल गया हो। यह सच है कि पहले वह पद्मला को चाहता था। अगर वह अब भी चाहता हो तो मुझे सन्तोष हैं। मगर बाकी दोनों को क्या करूँ?"
"मातृश्री के तीन सुपुत्र हैं, इसलिए दण्डनायिका जी ने सोचा होगा कि अपनी तीनों बेटियों को तीनों को दे दें तो ठीक हो जाएगा।" ___ "चामब्बे की बहुतेरी आकांक्षाएँ हो सकती हैं। मेरे अपने बेटों की आशाएँ क्या हैं, सो मैं समझती हूँ। चाहे जो भी हो जाय छोटे अप्पाजी के विषय में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते, वह भगवान की इच्छा है। एक बार नहीं, दस-दस बार इस सम्बन्ध में मन-ही-मन निश्चय हो चुका है। हो सकता क किसी ने व्यक्तरूप से बताया न हो। अव रहा उदय। वे सब लड़कियाँ उम्र में उससे बड़ी लगती हैं।"
"नहीं, आखिरी लड़की एक-दो महीने छोटी ही होगी।"
"फिर भी यह कैसे हो सकता हैं कम-से-कम चार साल का अन्तर तो होना ही चाहिए न"
"हाँ, सो तो ठीक है, कुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिए। मुश्किल है।"
"हेग्गड़ेजी से बातचीत करें। उन्हें हो सकता है कि कुछ सूझे। हमारा उरा तरह स्वीकार कर लेना मृत्युशैया पर पड़ी दण्डनायिका जी को वचन दिया-सा हो गया। इस बारे में मरिवाने दण्डनायक जी की क्या राय हैं, यह मालूम नहीं हो पा रहा है।" ___ "उन्होंने फिर इस विषय को छेड़ा नहीं?"
"वे इन सभी बातों से काफी परेशान ही नहीं, बल्कि बहुत बड़ी मानसिक पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं। इस भारी ग़लती के कारण, अपनी वर्तमान जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं। इसलिए खुद महाराज के पास जाकर उन्होंने जनसे निवेदन किया कि भारी गलती हो जाने से अब ऐसी ज़िम्मेदारी के निर्वहण की योग्यता को खो बैठने के कारण उससे उन्हें मुक्त कर दें। इस मनःस्थिति में विवाह के सम्बन्ध में बात करने का साहस वे कैसे कर सकते थे? उनके मन में क्या है, इस बात को हेग्गड़ेजी समझने की कोशिश करें तो अच्छा होगा।" .. "दण्डनायिका जी ने क्या कहा था-इस विषय की जानकारी दण्डनायक और उनकी बेटियों को है?"
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 2599