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के लिए शान्ति रही हो, ऐसा संयम से व्यवहार करती रही । मेरी माँ सदा कहा करती थीं कि नारी को संयम से बरतना चाहिए, ऐसा बरतने से कोई समस्या नहीं। उठती। अगर कभी समस्या उदी भी तो यह समर्पक ढंग से हल भी हो जाएगी। प्रभु ने भी यही सब सिखाया। तुम लोग भी इसी तरह संयम से रहने का अभ्यास करो और सुखी रहो। मुझे इन सबसे मुक्ति चाहिए। इस राजमहल के झंझटों से कुछ समय तक दूर रहूँ तो अच्छा हो। तुम्हें जन्म देकर बड़ा किया, बदले में इससे अधिक मैं नहीं माँगती। इतनी अभिलाषा को पूरा करो।"
"ऐसा ही हो माँ, आपकी इच्छा को पूरा न करें - ऐसा स्वार्थ हममें नहीं है। जब आप तीर्थ यात्रा पर जाती हैं तो आपके लौटने तक छोटे अप्पाजी को कुँवारा ही रहना होगा । उसका विवाह होने में और अधिक विलम्ब करना उचित नहीं, ऐसा मेरा विचार है। उसे भी सम्पन्न कर देतीं तो अच्छा होता।" बल्लाल ने कहा। तुरन्त ज्योतिषी को बुलाया गया, कुण्डलियाँ मिलायी गयीं। बताया गया. ''इस स्वभानु संवत्सर में समय अनुकूल नहीं। तारण संवत्सर के चैत्र- वैशाख मं व्यवस्था कर सकते हैं।"
अब क्या किया जा सकता है? माघ मास में यात्रा आरम्भ करने की एचलदेवी की इच्छा थी, सो अब उसे चार-पाँच महीनों तक के लिए स्थगित कर देना पड़ा। माँ का सान्निध्य कम-से-कम तब से उगाही - सोपा खुश हुए. शान्तला और बिट्टिदेव का विवाह अब तक लोगों के केवल ऊहापोह की ही बात बनी रहीं । परन्तु अब सभी को मालूम हो गया कि यह निश्चित है ।
हेगड़े मारसिंगय्या और माचिकब्बे तथा शान्तला को सामान्य जनता में पहले में भी अधिक गौरव का स्थान प्राप्त हुआ। सबसे अधिक आनन्द रेविमय्या को मिला तारण संवत्सर का चैत्र वैशाख जल्दी आए, यही मनौती भगवान बाहुबली सेरेविमय्या ने की थी । दोरसमुद्र के कार्यकलाप सन्तुलित रीति से चलने लगे थे। महाराज की तीन रानियाँ थीं और शीघ्र ही बिट्टिदेव का विवाह भी होनेवाला था, इसीलिए दोरसमुद्र के राजमहल के अन्तःपुर के हिस्से को विस्तृत करना भी जरूरी हो गया था। विट्टिदेव के विवाह के पहले इस विस्तरण कार्य को पूरा करने की व्यवस्था की गयी। नवविवाहितों को स्वतन्त्र रहने की इच्छा का होना सहज ही हैं, इसलिए महाराज बल्लाल अपनी रानियों के साथ बेलापुरी में रहें और महामातृश्री, उदयादित्य और बिहिदेव दोरसमुद्र में ही रहें तथा साधारण राजकाज का निर्वहण बिहिदेव ही करें यही व्यवस्था निर्णीत हुई।
युद्ध के बाद सिंगिमच्या बेलापुरी आ गये थे, इसलिए महाराज और रानियों की सुरक्षा आदि के लिए अन्य व्यवस्था करने की जरूरत नहीं पड़ी । महाराज के परिवार के साथ रानियों के गुरु और कवि नागचन्द्र दोनों बेलापुरी चले गये ।
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो :: 2666