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"नहीं, इस बात को जाननेवाली अब आप दूसरी हैं। किसी और को कुछ भी मालूम नहीं ।"
"मैं अपने मालिक को यह बात बता सकती हूँ?"
" बताइए । मैं भी आज छोटे अप्पाजी को बताऊँगी। यह समस्या हल हो जाय तो मैं तीर्थयात्रा पर जाने का विचार कर रही हूँ।"
" चन्दलदेवी के बच्चे की जिम्मेदारी न होती तो मैं भी तीर्थयात्रा पर चल सकती थी । "
"उसके लिए दूसरी व्यवस्था कर ली जा सकती हैं। यों तो शाम्तला यहीं राजमहल में ही तो रहेगी" कहकर एचलदेवी ने घण्टी बजायी । नौकरानी उपस्थित हुई।
"देखो, राजमहल में बालक आया है। उसे दूध पिलाया या नहीं, मालूम नहीं हुआ। छोटे अप्पाजी कहाँ हैं ? हेग्गड़ती जी की बेटी कहाँ हैं? वह रेचिमय्या कहाँ हैं?" एक साथ एचलदेवी ने कई प्रश्न कर डाले।
"रेविया बाहर के बड़े प्रकोष्ठ में बालक को खिला रहे हैं। उन्होंने बालक को दूध भी पिला दिया है। छोटे मालिक और छोटी अम्माजी पाठशाला के कक्ष में हैं, ऐसा रेविमव्या ने बताया है।"
"टीक, उन्हें यहाँ बुला लाओ। देरी हो गयी, हेग्गड़ती जी को जाना है ।" नौकरानी जल्दी जाकर उन्हें बुला लायी। शान्तला और बिट्टिदेव आ गये। एचलदेवी नौकरानी से हल्दी- कुंकुम, पान, सुपारी मँगवाकर हेग्गड़ती को बुलवाती हुई बोलीं, “देखिए हेग्गड़ती जी, बहुओं के आने तक इन लोगों से मंगल द्रव्य दिलवाना पड़ता है ।"
"हर बात के लिए समय की प्रतीक्षा करनी ही होती है। हम सब उस विधि के हाथ की कठपुतली हैं। अच्छा, आज्ञा हो तो चलूँ।" माचिकब्बे ने कहा । शान्तला ने एचलदेवी के पैर छूकर प्रणाम किया और कहा, "आज्ञा दें, हो आऊँ ।"
"बांछित पति का पाणिग्रहण कर सुखी रहो बेटी!" एचलदेवी ने आशीर्वाद दिया। उसे मालूम था कि बिल्देव वहीं है । शान्तला को सन्तोष हुआ । परन्तु उसे प्रकट न करके सिर झुकाकर बड़े संकोच से उसने बिट्टिदेव की ओर देखा और माँ के साथ चल दी। पालकी तक रेविमय्या बिलिंग को उठा लाया और शान्तला के हाथों में दे दिया। पालकी चल दी ।
पालकी के ओझल होने तक बिट्टिदेव दरवाजे पर खड़े रहे।
विवाह की बात एक साथ कई कारणों से स्थगित हो गयी थी, लगता था इससे
260 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो